सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:खग्रास.djvu/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४७
खग्रास

थी कि वह उनके कारण ऐशिया मे अपना प्रभाव नही डाल पाया। सूडान मे सैनिक राज्य हो गया। सूडान, मिस्र, ईराक, वर्मा, स्याम और पाकिस्तान मे फौजी तानाशाही चल रही थी। सब पार्टियाॅ समाप्त कर दी गई थी। इसका श्रीगणेश मिस्र से हुआ था और छूत की बीमारी की भाँति इन देशो मे सैनिक राज्य फैलता जा रहा था। फ्रान्स मे जनरल ड-गाल भी सैनिक सेनापति और अमेरिका का प्रधान भी प्रसिद्ध सैनिक जनरल था।

इन्ही कारणो से—इस घोषणा से ब्रिटेन, फ्रान्स, अमेरिका और पश्चिम जर्मनी मे खलबली मच गई। परन्तु उसकी तनिक भी परवाह न कर सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री ने अपने इस निर्णय की भी घोषणा कर दी कि यदि ६ मास के अन्दर रूस का यह प्रस्ताव स्वीकार न किया गया तो वह बर्लिन से अपनी सेनाएँ हटा लेगा तथा पश्चिमी जर्मनी से पश्चिमी बर्लिन तक के जल-स्थल तथा नभ के मार्गों को पूर्वी जर्मनी सरकार को सौप देगा। उस स्थिति मे पश्चिमी राष्ट्रो को इन मार्गो के सम्बन्ध मे पूर्वी जर्मनी की सरकार की कृपा के आधीन आश्रित होना पडेगा। स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति मे पश्चिमी राष्ट्रो को पश्चिमी बर्लिन मे रहना असम्भव हो जायगा। क्योकि पूर्वी जर्मनी की सरकार को पश्चिमी राष्ट्रो ने मान्यता नही दी है। और बदले मे पूर्वी जर्मनी निश्चित रूप से अपने क्षेत्र मे होकर पश्चिमी राष्ट्रो के यातायात को रोक देगा। दूसरे शब्दो मे ऐसी स्थिति तीसरे विश्व युद्ध की भूमिका बन सकती थी।

ईधन का भण्डार समुद्री पानी

भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ होमी जहागीर भामा और सोवियत वैज्ञानिक प्रो॰ कुरशातोव एक गुप्त कमरे मे गम्भीर परामर्श कर रहे थे। सोवियत वैज्ञानिक प्रो॰ कुरशातोव ने पूछा—

"क्या भारत भी वास्तव मे उद्जन शक्ति मे दिलचस्पी रखता है?"

"जरूर। परन्तु उसका दृष्टिकोण बिल्कुल भिन्न है। वह चाहता है कि उद्जन शक्ति का भी उपयोग युद्ध के बिनाशकारी आयोजनो मे न किया जाय, उद्जन शक्ति के सार्वजनिक उपयोग पर ध्यान दिया जाय।"