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खग्रास

थे, जो डा॰ के॰ एस॰ कृष्णन की अध्यक्षता में कार्य कर रहे थे। इस भू-भौतिक वर्ष में विज्ञान की लगभग १३ शाखाओ द्वारा धरती के वातावरण के रहस्यो का अन्वेषण और अध्ययन किया जा रहा था।

जो भारतीय सस्थान इस कार्यक्रम में भाग ले रहे थे, वे थे—भारतीय ऋतु विभाग, भारतीय सर्वे विभाग, भूगर्भ सर्वे विभाग, आकाशवाणी, नौसैनिक गवेषणा प्रयोगशाला की समुद्र विज्ञान विषयक शाखा, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली, पूना और कर्नाटक विश्वविद्यालयो की भौतिक प्रयोगशालाएँ, अलीगढ़ विश्वविद्यालय की गुलमर्ग स्थित प्रयोगशाला, भौतिक गवेषणा शाला, अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश की राजकीय वेधशाला। इनके अतिरिक्त थे कलकत्ते की बोस इन्स्टीट्यूट और कलकत्ता विश्वविद्यालय की इन्स्टीट्यूट आफ रेडियो फिजिकल एण्ड इलैक्ट्रोनिक्स। परन्तु सबसे अधिक प्रेक्षण कार्य भारतीय ऋतु विभाग द्वारा किया जा रहा था। यह विभाग अन्य अन्वेषण कार्यों के अतिरिक्त सूर्य के प्रभाव का भी अध्ययन कर रहा था। भारतीय भूगर्भ सर्वे विभाग कई हिमालयवर्ती केन्द्रों मे हिमनदियों से सम्बन्धित प्रेक्षण कार्य कर रहा था। कोचीन स्थित नौसैनिक गवेषणा प्रयोगशाला की समुद्र-विज्ञान शाखा मे तरङ्गो को मापने के लिए रिकार्डर यन्त्र लगाया गया था। अहमदाबाद की भौतिक गवेषणाशाला, गुलमर्ग केन्द्र की उइकनाल वेवशाला तथा दार्जिलिंग के गवेषणा केन्द्र मे ब्रह्माण्ड किरणों का विस्तृत अध्ययन हो रहा था। उत्तर प्रदेश की राजकीय वेधशाला मे कृत्रिम उपग्रहो का अध्ययन किया जा रहा था। इस तरह विभिन्न प्रेक्षण कार्यों के लिए भारत मे ६० केन्द्र स्थापित कर लिए गए थे।

ऋतु विभाग केन्द्र इनके अतिरिक्त थे। अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष के अन्तर्गत वायुमण्डल की ऊपरी सतह के अध्ययन के लिए राकेटो का उपयोग किया जा रहा था तथा अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के संचालन के लिए दिल्ली, टोकियो, खारतूम, बीरुत और सिंगापुर के बीच रेडियो सम्बन्ध स्थापित थे।