पृष्ठ:खग्रास.djvu/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०२
खग्रास

"आईस्टीन के मत से घनीभूत ऊर्जा ही भूत द्रव्य है। इसीलिए उर्जा मे भी भार है, और गमता भी। इसी भार और गमता के कारण ऊर्जा अथवा शक्ति स्वरूप प्रकाश जिस पथार्थ पर पडता है उसे प्रभावित करता है। यही तथ्य 'ऊर्जाणुवाद' कहाता है। ऊर्जाणुवाद और सापेक्ष्यवाद मे अभी खाई है जिसे भावी वैज्ञानिक पाटेगे और तब यह सिद्धान्त स्थिर किया जायगा कि अतीन्द्रिय द्रव्य एलेक्ट्रोन से लेकर विशाल सृष्टिगत पदार्थों की व्याख्या एक ही सिद्धान्त पर आधारित है।"

"अहा, इसे ही हमारे महर्षियो ने कहा था-"अणोरणीयान् महतो महीयान्।"

चिड़िया की नजर

चाय पीकर दिलीपकुमार बराण्डे मे आबैठे। तिवारी ने भी सिगरेट सुलगायी। रमाबाई बैठकर तिवारी के एक मोजे की मरम्मत करने लगी। धूप बहुत अच्छी लग रही थी। दो-तीन दिन पूर्व बरसात होकर चुकी थी, पर आज बादल का नामोनिशान न था। गर्मी के दिन अब बीत चुके थे, इसलिए पहाड पर आए हुए सैलानी ही यहाँ रह गए थे। दिलीपकुमार ने दो माह की छुट्टी ले ली थी और तिवारी तो बेफिकरे थे। फिर अब तो यहाँ उनकी दिलचस्पी के गहरे साधन उपस्थित थे। दिलीप की तिवारी के सम्बन्ध मे जो धारणा बन गई थी कि वह किसी प्रेम के जाल मे फँस गया है-उस पर दिलीप को अभी उनसे बात करने का अवसर ही नहीं मिला था। उधर तिवारी की गम्भीरता और मग्नावस्था दिन-दिन बढती जाती थी। अधिकाश मे वह गुपचुप अपने कमरे मे पडे रहते थे। शिकार का शौक समाप्त हो गया था। अब वह चुपचाप बिना किसी से कुछ कहे चाहे जब अपने कमरे से बाहर हो जाते थे और बहुत रात बीतने पर आते थे।

आज तिवारी घर पर थे। मौसम अच्छा था। दिलीपकुमार आराम-कुर्सी पर पड़े खमीरी तम्बाकू मे दम लगा रहे थे और तिवारी अखबार पर सरसरी नज़र डाल रहे थे। एकाएक अखबार से नजर उठाकर उन्होने कहा-"इस समय हमारे देश को तीन बडे खतरे है जिनमे पहला खतरा पाकिस्तान