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पृष्ठ:खग्रास.djvu/३१२

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खग्रास

रहा हूँ। मैने रसायनशास्त्र पढा है। रसायनशास्त्र की सीमा मे परमाणु अच्छेद्य ओर अभेद्य है।

"किन्तु इसकी सीमा से परे भौतिकशास्त्र की जहाँ सीमा लगती है, वहाँ परमाणु अच्छेद्य और अभेद्य नहीं रहते। वे रूप परिवर्तन कर लेते है।"

"जरा इस बात को और अच्छी तरह समझाइये, पापा।"

"रसायनशास्त्र की सीमा मे पदार्थ के अणु टूटकर परमाणु के रूप मे बदल जाते है । परन्तु फिर वही परमाणु कुछ विजातीय परमाणुओ से मिलकर फिर अणु का रूप धारण कर लेते है। इसी से नए पदार्थ की उत्पत्ति होती है। कीमिया का भी यही रहस्य है।"

"तो यह पदार्थो का रूप परिवर्तन अणु और परमाणु तक ही सीमित रहता है?"

"किन्तु भोतिक शास्त्र के अन्तर्गत वह परमाणु पदार्थ से शक्ति मे रूपान्तरित होते हे और शक्ति पदार्थ मे रूपान्तरित होती है। इस प्रकार पदार्थ और शक्ति का अन्योन्य सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।"

"किन्तु परमाणु का निर्माण कैसे होता है?"

"जब परमाणु टूटते है, तो उनमे से दो प्रकार की प्रकृत कणिकाएँ निकलती है । एक धन प्रपराणु दूसरी ऋण प्रपराणु। धन स्त्री आचरण करता है ऋण पुरुष आचरण। जब तक दोनो एकाकी रहते है, गतिशील रहते है, परन्तु यदि पदार्थों की अवरोधक शक्ति से धन प्रपराणु की गति मे बाधा आ उपस्थित हुई या एकाएक किमी ऐसे पदार्थ से जा टकराए जहाँ यह उस पदार्थ का भेदन करके आगे न जा सके तो उस स्थिति मे इनके आसपास व्यापक ऋण प्रपराणु इनको घेर लेते है, उस समय दोनो मे पारस्परिक स्नेहाकर्षण का एक चक्र बंध जाता है। कुछ धन प्रपराणु उन ऋण प्रपराणुओ के बीच घिर जाते हैं, और ऋण प्रपराणु उनको केन्द्र मे लेकर उनके आसपास एक विशेष परिधि मे चक्कर काटने लगते है। इस तरह एक परमाणु का निर्माण होता है।"