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पृष्ठ:खग्रास.djvu/५९

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५९
खग्रास

"तब तो तुम चिकित्सा शास्त्र के लिए भी एक नया अध्याय लाए हो?"

"क्यो नही। यह निश्चित है कि हमारे शरीर की रचना अन्तरिक्ष में रहने योग्य नहीं है। भूमण्डल के वायुमण्डल के अनुरूप ही वह है। परन्तु शरीर की जो जीवन क्रिया है, वह किसी भी वातावरण के अनुरूप हो जाती है। शरीर में ऐसी व्यवस्था है। क्या यह विज्ञ संसार के लिए एक सर्वथा अभूतपूर्व, अद्भुत और विश्वास के अयोग्य बात नहीं है कि मैं कहूँ कि मैने आज उन्नीस दिन में भू स्पर्श करने के बाद प्रथम बार श्वास लिया है।"

"निस्सदेह अविश्वसनीय बात है।"

"पर शरीर में श्वास की व्यवस्था प्रथम से ही है। गर्भस्थ शिशु माता के गर्भ में श्वास कहाँ लेता है।"

"तब तो अन्तरिक्ष के निवासियो को फेफड़े की आवश्यकता ही नहीं है।"

"मेरी प्यारी लिज़ा, क्या तुम मछलियो को नही देखती जो जल में श्वास लेती ही नहीं। फेफड़ा उनके है ही नही।"

"वाह वाह, तब तो हमे अन्तरिक्ष में स्थायी रूप से रहने के लिए अपने जीवन मे बहुत कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा।"

"बेशक, और कई पीढियो तक यदि हम अन्तरिक्ष में रहे तो हमारे शरीर की बनावटो में भी काफी परिवर्तन हो जायगा।"

"खैर, तुम अपनी दिलचस्प कहानी आगे सुनाओ।"

"अब मुझे पृथ्वी से चले चौदहवाँ दिन था और मैं पृथ्वी की कक्षा से छुटकारा पाने का यत्न कर रहा था। अब मैंने आगे बढ़ने का भयानक संकल्प किया। यह एक ऐसा दुस्साहस था कि उस वेग के ताप ही से मैं भस्म हो सकता था। मैंने यन्त्र का तीसरा राकेट छोड़ा। दस हजार टन का धक्का हमें लगा और मैं पृथ्वी की कक्षा को छोड़कर शून्य मे उड़ चला। अन्धकार