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खूनी औरत का।


साहब की स्त्री के दिये हुए फल गंगामाता की गोद में दिए। कुछ मिठाई पैसे भी चढ़ाए।

इसके बाद जल के बाहर निकलने पर सुकुमारी बीबी ने मुझे बहुत बढ़िया रेशमी रक्ताम्वर पहिराया, हरे कमखाब की जाकेट पहराई और ऊपर से एक सुनहले काम की गुलाबी सिल्क चादर ओढ़ा दी साथ ही जबर्दस्ती मेरे कानों में आयरिंग 'गले में सिकडी' हाथो में कड़े और पैरों में छड़े डाल दिए।

इतने ही में क्या देखती हूं कि मेरे पुराने कपड़े, अर्थात् धोती, चादर और सलूका, कंगलों को बांट दिए गए। सुकुमारी के कहने से पुन्नी-मुन्नी ने भी अपनी पुरानी धोती-चादर भिखमंगों को देकर नई धोती-चादर पहिर-ओढ़ ली। इसके बाद पुन्नी ने क्या मजा किया कि वे दस रुपए, जो फिर कर आए थे, मुझ पर तीन पार उतार कर कंगलों के आगे फेंक दिए।

अस्तु, फिर मैंने पैसों और मिठाइयों को भिखारियों और कंगलों में बंटवा दिया और इस काम से छुट्टी पाकर गाड़ियों पर सवार होकर स्टेशन का रास्ता लिया।

स्टेशन पर पहुंचते ही डांक गाड़ी आगई और सुकुमारी तथा पुन्नी मुन्नी के साथ में फर्स्ट क्लास के एक डब्बे में सवार हुई। उसके बगल वाले डब्बे में अपने दोस्त और दोनों नौकरों के साथ बारिस्टर साहब सवार हुए। थोड़ी देर तक गाड़ी ठहरी रही, इसके बाद सीटी देकर चल खड़ी हुई। मैंने मनही मन भगवान् का सुमरन कर उनके पुनीत पादपद्मों में पुनः पुनः प्रणाम किया।

रास्ते भर मुझे सुकुमारी ने भरपेट छेड़ा, पर उन सब बातों को मैं यहां पर लिखना मुनासिब नहीं समझती।