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१७)
सात खून



ऊंची है ! उसमें केवल एक ही ओर लोहे का छड़दार मजबूत दर्वाजा था । उस कोठरी में एक तरफ एक तार वाली लोहे की चारपाई बिछी हुई थी और उसपर दो अच्छे बिलायती कंबल रक्खे हुए थे। एक तरफ एक चौकी के ऊपर पानी की सुराही और गिलास रक्खा हुआ था और उसी चौकी पर कई तरह के फल, मिठाइयां और ताजी ताजी पूरियां भी रक्खी हुई थीं। एक तरफ़ दो कोरी धोतियां भी रक्खी हुई थीं। पलङ्ग के अलावे, मेरे बैठने के लिये एक छोटी सो चौकी भी वहां पर पड़ी हुई थी और कोठरी के बाहर तीन कुर्सियां रक्खी हुई थीं।

अरे, मेरे ऐसी 'खूनी औरत' के लिये, जिसे कि फांसी की सजा का हुक्म होचुका है, इतनी तैयारियां की गई हैं ! क्या भाई दयालसिंह का इतना बड़ा रुतबा है कि वे एक फांसी पर चढ़ने वाली औरत के वास्ते इतना कुछ कर सकते हैं ! अस्तु, बहुत देर तक मैं कुछ सोचने न पाई, क्योंकि जेलर साहब ने मुझसे यों कहा कि,---" दुलारी, तुम जल्दी खाने-पीने से छुट्टी पा लो, क्योंकि दस बज चुके हैं और ठीक ग्यारह बजे बारिष्टर साहब तथा एक और अंगरेज अफ़सर के साथ भाई दयालसिंह यहाँ आजायंगे।"

यो कहकर जेलर साहब वहांसे जाया ही चाहते थे कि मैंने उन्हें रोका और उनसे यों कहा,---"महाशय, तनिक ठहर जाइए और मेरी एक विनती सुन लीजिए।"

यह सुन कर वे ठहर गए, तब मैं उनसे यो कहने लगी,--- "महोदय, महीनों से मैं यहां पर हूं, इसलिए आप इतने दिनों में मेरे स्वभाव को भली भांति जान गए होंगे। देखिए, अपने पिता के मरने के बाद जब मैं घर से विदा हुई थी, तब दूसरे गावं में जाने पर मुझे एक चौकीदार ने दया करके दूध पिला दिया था। इसके पीछे जब मैं कानपुर की कोतवाली में आई, तब वहां पर भी बराबर दूध ही पीकर अपना दिन काटती रही। फिर