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खूनी औरत का


सन्तुष्ट हो, यही आप कीजिए । -

यह सुनते ही जेलर साहब ने पांच-चार फांस्टेबिलों को बुलाया और उनके आने पर जेलर साहब के हुक्म से सारी चीजें उस कोठरी में से हटा दी गई। इसके बाद लोहे की बाल्टी में पानी और टीन का गिलास लाकर रख दिया गया । और दो नया, किन्तु साधारण कंबल भी मुझे दे दिया गया। इसके बाद उन्हीं दोनों कहारियों में से एक कहांरी एक कोरी हंडिया में दूध ले आई, जिसे बाहर जाकर मैने पी लिया। फिर जब मैं मुहं हाथ धोकर अपनी कोठरी में लौट आई, तब जेलर साहब मेरी कोठरी का ताला खुला छोड़कर चले गए!मैने देखा कि आज मेरी कोठरी के आगे कोई कांस्टेबिल नहीं टहल रहा है !!!

जेलर साहब के जाने पर मेरी कोठरी के बाहर दालान में भाई दयालसिंह और बैरिस्टर साहब एक एक कुर्सी पर बैठ गए और भाईजी के कहने से मैं अपनी के कोठरी के अन्दर जमीन में बैठ गई।

मेरा ऐसा ढंग देखकर भाई दयालसिंहजी ने कहा,--"हैं, हैं! यह तुम क्या करती हो ? ऐसे जाड़े पाले में खाली धर्त्ती में क्यों बैठती हो?"

यह सुन और सिर झुकाकर मैने जरा सा मुस्कुराकर कहा-- "जी,एक तो मुझे सर्दी-गर्मी के झेलने का जन्म से ही अभ्यास पड़ा हुआ है, दूसरे इस जेल में मुझे और भी ठोस बना दिया है।

यों कहते कहते मेरो दृष्टि बारिष्टर साहब की ओर गई तो मैंने वहाँ देखा कि वे मुहं फेरकर अपनी आंखें पोछ रहे हैं! यह देखकर - मुझे बड़ा अचम्भा होने लगा कि, 'हाय, मुझ अभागिन के लिये ये इतने दुखी क्यों हो रहे हैं।'