॥श्रीगणेशाय नमः॥
श्रीगणेश-पुराण
प्रथम खण्ड
(१. प्रथम अध्याय)
श्रीगणेगशजी की कथा का प्रारम्भ
नैमिषे सूतमासीनमभिवाद्य महामतिम्।
कथामृतरसास्वादकुशलः शौनकोऽब्रवीत्॥
प्राचीन काल की बात है—नैमिषारणय क्षेत्र में ऋषि-महर्षि और साधु-सन्तों का समाज जुड़ा था। उसमें श्रीसूतजी भी विद्यमान थे। शौनक जी ने उनकी सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया कि 'हे अज्ञान रूप घोर तिमिर को नष्ट करने में करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान श्रीसूतजी! हमारे कानों के लिए अमृत के समान जीवन प्रदान करने वाले कथा तत्त्व का वर्णन कीजिए। हे सूतजी! हमारे हृदयों में ज्ञान के प्रकाश की वृद्धि तथा भक्ति, वैराग्य और विवेक की उत्पत्ति जिस कथा से हो सकती हो, वह हमारे प्रति कहने की कृपा कीजिए।'
शौनक जी की जिज्ञासा से सूतजी बड़े प्रसन्न हुए। पुरातन इतिहासों के स्मरण से उनका शरीर पुलकायमान हो रहा था। वे कुछ देर उसी