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रामेश्वरी–अब तक नहीं आए? आधी रात तो हो गई होगी। जाते वक्त तुमसे कुछ कहा भी नहीं?

जालपा-कुछ नहीं।

रामेश्वरी–तुमने तो कुछ नहीं कहा?

जालपा–मैं भला क्यों कहती। रामेश्वरी–तो मैं लालाजी को जगाऊँ? जालपा—इस वक्त जगाकर क्या कीजिएगा? आप चलकर कुछ खा लीजिए न।

रामेश्वरी–मुझसे अब कुछ न खाया जाएगा। ऐसा मनमौजी लड़का है कि कुछ कहा, न सुना, न जाने कहाँ जाकर बैठ रहा? कम-से-कम कहला तो देता कि मैं इस वक्त न आऊँगा।

रामेश्वरी फिर लेटी रही, मगर जालपा उसी तरह बैठी रही। यहाँ तक कि सारी रात गुजर गई, पहाड़ सी रात, जिसका एक-एक पल एक-एक वर्ष के समान कट रहा था।