पृष्ठ:गबन.pdf/१३

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काम में अग्रसर हो रहे थे। वे जो काम करते, दिल खोलकर। आतिशबाजियाँ बनवाई तो अव्वल दर्जे की। नाच ठीक किया तो अव्वल दर्जे का, बाजे-गाजे भी अव्वल दर्जे के, दोयम या सोयम का वहाँ जिक्र ही न था। दयानाथ उसकी उच्छृखलता देखकर चिंतित तो हो जाते थे, पर कुछ कह न सकते थे। क्या कहते!