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वहीं मर जाएगा। बात-बात पर वार्डर गाली देगा, जूतों से पीटेगा, तुम समझता क्या है!

रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था, प्रतिक्षण उसका खून सूखता चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। काँपती हुई आवाज से बोला-आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही! भेज दीजिए जेल। मर ही जाऊँगा न, फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जाएगा। जब आप यहाँ तक मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूँ। जो कुछ होना होगा, होगा।

उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुँच गया था, जब जरा सी सहानुभूति, जरा सी सहृदयता सैकड़ों धमकियों से कहीं कारगर हो जाती है। इंस्पेक्टर साहब ने मौका ताड़ लिया। उसका पक्ष लेकर डिप्टी से बोले, हलफ से कहता हूँ आप लोग आदमी को पहचानते तो हैं नहीं, लगते हैं रोब जमाने। इस तरह गवाही देना हर एक समझदार आदमी को बुरा मालूम होगा। यह कुदरती बात है। जिसे जरा भी इज्जत का खयाल है, वह पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना पसंद न करेगा। बाबू साहब की जगह मैं होता तो मैं भी ऐसा ही करता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह हमारे खिलाफ शहादत देंगे। आप लोग अपना काम कीजिए, बाबू साहब की तरफ से बेफिक्र रहिए, हलफ से कहता हूँ।

उसने रमा का हाथ पकड़ लिया और बोला-आप मेरे साथ चलिए, बाबूजी! आपको अच्छे-अच्छे रिकॉर्ड सुनाऊँ।

रमा ने रुठे हुए बालक की तरह हाथ छुड़ाकर कहा-मुझे दिक न कीजिए इंस्पेक्टर साहब। अब तो मुझे जेलखाने में मरना है।

इंस्पेक्टर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा-आप क्यों ऐसी बातें मुँह से निकालते हैं साहब, जेलखाने में मरें आपके दुश्मन।

डिप्टी ने तसमा भी बाकी न छोड़ना चाहा। बड़े कठोर स्वर में बोला, मानो रमा से कभी का परिचय नहीं हैसाहब, यों हम बाबू साहब के साथ सब तरह का सलूक करने को तैयार हैं, लेकिन जब वह हमारा खिलाफ गवाही देगा, हमारा जड़ खोदेगा, तो हम भी कार्रवाई करेगा। जरूर से करेगा। कभी छोड़ नहीं सकता।

इसी वक्त सरकारी एडवोकेट और बैरिस्टर मोटर से उतरे।