पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/१०

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पड़ता है-गुणहीन 'गोसाइयों की गपोगाथा के गन्दे गीत गाकर, शान गोरवरहित लखनाएँ किसप्रकार पापा चार में प्रवृत्त होने लगती है-विकट स्थिति उपस्थित होने पर समयोचित क्रोध द्वारा, सती-साध्वी देवियाँ छमवेशधारी 'धर्मधुरन्धरों' को धिक्कारती हुई, किस प्रकार स्वधर्म-रक्षा में सन्नद्ध होती हैं-निराकार परमेश्वर के स्थान में विविध प्रकार की प्रतिमाएँ पूजने तथा तीर्थ- यात्रा करने पर समझदारों को, किसप्रकार उनकी निः- सारता और निरर्थकता ज्ञात होजाती है इत्यादि अनेक अद्भुत घटनाओं का रहस्योद्घाटन इस पुस्तक द्वारा बड़ी ही मार्मिकता और उत्तमता से किया गया है-बहुन ही बढ़िया चित्र खीचा गया है।

पाठको ! लीजिए, 'हिन्द-समाज' के अत्याचारों का चिट्ठा पढ़िये और विधवाओं की दुर्दशा पर आँसू बहाइये! याद रखिये, यदि इस महाअनर्थकारी कुत्सित-काण्ड को दूर करने का पूर्ण प्रयत्न न किया गया तो देश और जाति दोनों, अधमा-अधोगति के गहरे गढ़े में गिर, शोक-सन्तापपूर्वक, बेगुनाह बच्चों एवम् असहाय अब- लाओं की प्राह से भस्म होते रहेंगे। निरर्थक निश्चयों ओर निष्फल प्रस्तावो द्वारा अब कोरे कागज़ काले करने का समय नहीं रहा। आवश्यकता है कि लोग कार्य-क्षेत्र में अवतीर्ण हो, विधवाओं की दहकती हुई दुःखाग्नि पर मिट्टी का तेल उड़ेलने के स्थान में पुण्य- सलिला भगवती भागीरथो के विमल वारि की विशुद्ध वर्षा करें-जुल्म जंजीर की कड़ी काड़ेयाँ काटने के लिए कठोर कुधातु के कुल्हाड़े को काम में लावे-दुर्गति-दुर्ग