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पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/१३०

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गल्प-समुच्चय


अँधेरा हो चला था। बाजी बिछी हुई थी। दोनों बादशाह अपने-अपने सिंहासनों पर बैठे हुए मानो इन दोनों वीरों की मृत्यु पर रो रहे थे।

चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। खंडहर की टूटी हुई मेहराबें, गिरी हुई दीवार और धूल धूसरित मीनारें इन लाशों को देखती और सिर धुनती थीं।



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