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पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२०

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गल्प-समुच्चय

सरला भी डाक्टर साहब को यथा-शक्य सेवा करने लगी। पर नौकरों की तरह नहीं, घर के बच्चे की तरह। वह डाक्टर साहब को अपने हाथ से भोजन कराती। अन्नपूर्णाजी यद्यपि अपने देवोपम पुत्र के लिए स्वयं ही भोजन तैयार करती; पर सरला फिर भी उनको कुछ कम सहायता न देती । सरला को धीरे-धीरे पाक-शास्त्र की शिक्षा मिलने लगी। वृद्धा अन्नपूर्णा के निरीक्षण में निरामिषभोजी डाक्टर साहब के लिए विविध प्रकार के शाक, खीर, हलुआ आदि अनेक सु-स्वादु और पौष्टिक पदार्थ वह बनाने लगी। प्रातःकाल होते ही, अन्नपूर्णा की पूजा का सामान भी वह ठीक कर देती। घर के बग़ीचे से फूल लाकर सजा देती और चन्दन आदि सामग्री यथा-स्थान रख देती। अपनी सेवा और सु-स्वभाव से---मतलब यह कि---सरला ने डाक्टर साहब और उनकी वृद्धा माता के हृदय में सन्तान से बढ़कर स्नेह पैदा कर लिया।

बड़े दिन की छुट्टियों में सतीश घर आया। उसने देखा कि घर में एक देवी-स्वरूपिणी कन्या रहती है। उसके आलोक से उसने मानों सारा मकान आलोकित पाया। मामा से पूछने पर उसको मालूम हुआ कि वह भी उनकी एक आत्मीया है और कुछ दिनों तक उनके यहाँ रहने के लिए चली आई है। दो-चार दिन तक सतीश को उसके साथ बात-चीत करने में संकोच-सा मालूम हुआ। उधर सलज्जा सरला भी एक नये आदमो के साथ बातचीत करने में झिझकती रही; पर कुछ ही दिनों में दोनों की