उसकी इच्छा थी—असंख्य रत्न-संग्रह करना। इसी इच्छा को पूरी करने के लिये महमूद ने भारत पर अनेक बार आक्रमण किया और दैवेच्छा से वह सदा सफल-मनोरथ ही होता रहा। उसकी राजधानी, ग़ज़नी, भारत-ऐश्वर्य से अलकापुरी के तुल्य हो गई; परन्तु महमूद सन्तुष्ट न हुआ।
सोमनाथ के ऐश्वर्य की कथा सुनकर उसने गुर्जर पर भी धावा करने का निश्चय किया; परन्तु उसे सुयोग न मिलता था। उसने अनेक बार चेष्टा की; परन्तु कुछ कर न सका। इस बार उसने शाहज़ादा शाह जमाल और सेनापति रुस्तम को भेजा। हिन्दू वणिक के वेष में उन लोगों ने गुर्ज्जर-देश में प्रवेश भी किया। इसके बाद जो कुछ हुआ वह पाठकगण जानते ही हैं।
राज-कन्या कमलावती के आदेश से भैरव उन लोगों को एक निरापद् स्थान तक पहुँचाकर गुर्ज्जर को लौट आया। मार्ग में शाह जमाल और रुस्तक पिश्तो-भाषा में वार्तालाप करते थे। शाह जमाल ने कई बार कमलावती का नामोल्लेख किया। भैरव पिश्तो नहीं जानता था, इससे कुछ समझ न सका; पर गुर्ज्जर की माता प्रत्यक्ष देवी कमलावती का पवित्र नाम उन म्लेच्छों के मुख से सुनकर भैरव का सारा शरीर जलने लगा। एक बार उसके मन में आया, कि नाव को समुद्र में डुबा दे, जिससे गुर्ज्जर के दो प्रबल शत्रुओं का नाश हो जाय; पर उसी समय कमलावती का अन्तिम वचन उसके ध्यान में आ गया—देखना भैरव, इन लोगों का कुछ भी अनिष्ट न हो। शत्रु होने पर भी ये लोग हमारे