पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२१७

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कमलावती

कमलावती ने तिरस्कार-पूर्ण स्वर से कहा—शैतान, नराधम,तूने क्यों हमारा सर्वनाश किया? क्या हमारे आतिथ्य-सत्कार का यही पुरस्कार है?—शाह जमाल ने उस तिरस्कार का उत्तर न दिया। वह इस सयय कमलावती की ओर स्थिर दृष्टि से देखता था। जिसके लिए आज उसने गुर्ज्जर को प्रेत-भूमि कर दी है, उसे सामने खड़ी देखकर शाह जमाल उन्मत्त हो उठा। फिर विकृत स्वर से बोला—कमला! तुम यहाँ क्यों घूम रही हो? यह हम अनुमान से कह सकते हैं कि कदाचित तुम कुमारसिंह को मृत देह लेना चाहती हो; पर कुमार मरे नहीं हैं, आहत हैं और हमारे शिविर में बन्दी हैं। कमला हम कृतघ्न नहीं हैं। यदि तुम चाहो, तो हम अभी उन्हें स्वाधीन कर दें; पर इसके लिये मैं तुम्हें लेना चाहता हूँ।—इसके बाद शाह जमाल उत्तेजित स्वर से कहने लगा—कमला, सुलतान तुम्हें बेगम बनाना चाहते हैं और मैं तुम्हें अपनी हृदयेश्वरी, अपनी प्राणेश्वरी करना चाहता हूँ। मैं ग़ज़नी का भावी सुलतान हूँ; पर कमला तुम्हारे लिए मैं वह राज्य छोड़े देता हूँ। मैं तुम्हें चाहता हूँ। मैंने निश्चय कर लिया है कि अब मैं अफ़ग़ानिस्तान न लौटूंँगा। इसी देश में एक कुटी बनाकर मैं तुम्हारे साथ सुख से रहूँगा। मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए। कमला, प्राणेश्वरी कमला! एक बार कहो, तुम मेरी हो।—इतना कहकर शाह जमाल कमलावती को आलिङ्गन करने के लिए दौड़ा। एकाएक पीछे से एक बन्दूक की आवाज़ आई। शाह जमाल आहत होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। शीघ्र ही वह आघात-