का साधारण आक्षेप भी असह्य हो जाता है, जिसके चरित्र के विषय में उसे स्वयं सन्देह हो। उमा को केवल सन्देह ही नहीं था, उसके पास प्रमाण भी था। फिर वह बिहारी की बातें कैसे सह लेती? प्रतिघात की मात्रा प्रबल हो गई। उमा का अङ्ग-अङ्गल फड़कने लगा। उसकी दशा छेड़ी हुई सर्पिणी के समान हो गई। उमा ने बिहारी को सरोष नेत्रों से देखकर उत्तर दिया-लेकिन इसकी सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। क्या तुमने प्रेम का स्वाँग भरकर मुझे जाल में नहीं फंसाया? मेरी आशाओं का खून नहीं किया? तुम्हें मुझसे नहीं मेरे धन से प्रेम था।
"यह सरासर झूठा आक्षेप है मेरा प्रेम सत्य था और मैं उस पर अब से घण्टे-भर पहले दृढ़ रहा हूँ; लेकिन अब मेरी आँखों का परदा उठ गया।"
"झूठ नहीं बिलकुल सच है, तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया बाजारू औरतों के पीछे दौड़ते फिरे।"
बिहारी ने कृत्रिम क्रोध से कहा—उमा अब मैं ज्यादा सहन नहीं कर सकता। अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए, मुझ पर मिथ्या आक्षेप करती हो।
"यह बात झूठी नहीं है, मेरे पास इसका सबूत है"—यह कहकर उमा उठी और अपने शृंगार-गृह में चली गई। सन्दूक खोलकर एक पत्र निकाला। यह श्यामा का वही पत्र था, जिसे उसने बिहारी की जेब से निकाल लिया था। उमा ने पत्र लाकर बिहारी के सामने फेंक दिया। बिहारी ने पत्र उठाकर पढ़ा और