पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

3 गदर के पत्र देना चाहिए। जिस जोगी के साथ मैं यहाँ तक आया था, उसने मेरठ चलने का वादा भी किया । इस गांव के बहुत-से आदसी मेरे साथ हरचंदपुर तक गए । जहाँ एक जमीदार फ्रांसिस कोहिन नामी रहते थे। यह पहले तहसीलदार थे। यह बुजुर्ग आदमी मेरे साथ अत्यंत कृपा से पेश आए, और मुझे वे चिठ्ठियां दिखाई, जो कर्नल न्यूट-कप्तान सालगेड साहव ने लिखकर दी थी कि इन्होंने मुझे बहुत माराम पहुँचाया, और हमारी बड़ी खातिर की, तथा सकुशल मेरठ तक पहुँचा दिया। ये चिट्ठियां देखकर मैंने भी मेरठ जाने की इच्छा प्रकट की। इस बीच में एक चिट्ठी मेरे नाम 'केकड़ा गाँव' से इस आशय की आई कि राजा झीद के १०० सवार कप्तान मेक, इंदौर की अधीनता में मुक्काम केकड़ा' में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, और वह मुझे मुक्काम राई पर, जहाँ पड़ाव है, पहुंचा देंगे। इस पर कोहिन साहब ने मुझे अपनी गाड़ी पर सवार करा- कर केकड़ा रवाना कर दिया । यहाँ पहुँचकर कप्तान मेक, इंदौर और लेफ्टिनेंट मेयो को देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई, और जान में जान आई। मैं २५ दिन तक देहातों, जंगलों और वीरानों में भटकता रहा । यदि मुझे हिंदोस्तानी भाषा न आती होती, तो मैं अवश्य हो कत्ल कर दिया गया होता । मैं हिंदोस्तानी भाषा उतनी ही शुद्ध बोलता हूँ, जितनी अंगरेजी। मैं अपनी जीवन रक्षा