पृष्ठ:ग़दर के पत्र तथा कहानियाँ.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४५
शिक्षा-प्रद दृश्य

घोषी ने कहा, आज रात को अपने भाई के यहाँ ले जाऊँगा, जो शहर की दूसरी तरफ रहता है। और, कोई ऐसी युक्ति निकालूॅगा कि तुम भी शहर से बाहर निकल जाओ। हम और आप अब दोनो कर्नाल चलेंगे। मैं उसके घर के भीतर जाकर लेट रहा, और वह दरवाज़े पर बैठा रहा। थोड़ी ही देर में बदमाश अंदर आए, और खूब ज़ोर-ज़ार से हँसने और चिल्लाने लगे, तथा खिड़की के रास्ते बाहर चले गए। मैंने खुद सुना कि उनमे से एक आदमी ने कहा कि क्या खूब तमाशा है।

अब मेरे नौकर भी वापस आ गए थे और इस घटना का ज़िक्र आपस में करने लगे। मुझे इनकी बहुत प्रसन्नता हुई कि उन्होंने मुझे मरा हुआ समझ लिया। एक ने कहा, मेम साहब और बच्चों का कत्ल बड़ी बुरी बात हुई। अब रोज़गार कहाँ मिलेगा। मगर दूसरे ने फ़ौरन् जवाब दिया कि वे लोग काफ़िर थे। अब दिल्ली के शाह हमारी परवरिश करेंगे।

मैं आधी रात के बाद बहुत धोरे से बाग़ में गया, और धोबिन की कुर्ती पहन, ओढ़नी ओढ़ बाहर निकला, और ठिकाने पर पहुंचकर धोबी से मिला। वह मुझे साथ लेकर अपने भाई के मकान पर गया। रास्ते में हर जगह खलबली मची हुई थी। मेगज़ीन की तरफ से तेज़ आग की लपटें उठ रही थी, और फ़सील के बाहर बंदूक़ें चल रही थी। जब हम उसके भाई के मकान के निकट पहुँचे, तो घोषी ने कहा