पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/३१५

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२७६ गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । तहक हैं और इस प्रकरण के आरम्म में कर्मणा वध्यते जन्तुः विद्यया तु प्रमु. च्यते' कर्म से ही प्राणी बाँधा जाता है और विद्या से उसका छुटकारा होता है- यह जो वचन दिया गया है उसमें विद्या' का अर्थ ज्ञान' ही विवक्षित है। भगवान् ने अर्जुन से कहा है कि:- शानानिः सर्वकाणि भस्मसात्कुरतेऽर्जुन । ज्ञान-रूप अग्नि से सब कर्म भस्म हो जाते हैं" (गी. ४. ३७); और दो स्थलों पर महाभारत में भी कहा गया है कि:- वीजान्यग्न्युपदग्यांनि न रोहन्ति यथा पुनः । निदग्धैस्तथा क्लेश रमा संपद्यते पुनः ॥ भूना हुआ बीज जैसे उग नहीं सकता, वैसे ही जव ज्ञान से (कमों के) क्लेश दग्ध हो जाते हैं तब वे श्रात्मा को पुनः प्राप्त नहीं होते" (ममा. वन. ITEM६, १०७ शां. २११. १७)। उपनिपदों में भी इसी प्रकार ज्ञान की महत्ता बतलाने वाले अनेक वचन हैं, जैसे “य एवं वेदाई ब्रह्मास्मीति स इदं सर्वं भवति" (वृ... ४. १०) जो यह जानता है कि मैं ही ब्रह्म हूँ, वही अमृत ब्रह्म होता , जिस प्रकार कमलपत्र में पानी लग नहीं सकता उसी प्रकार जिसे ब्रह्मज्ञान हो गया उसे कमै दूपित नहीं कर सकते (छां. ४. १४,३); ब्रह्म जाननेवाले को मोड़ मिलता है (ते. २.१); जिसे यह मालूम हो चुका है कि सब कुछ अात्ममय है उसे पाप नहीं लग सकता (वृ. ४. ४. २३); ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशः (वे. ५. १३६६.३) परमेश्वर का ज्ञान होने पर सब पाशों से मुक्त हो जाता है। "क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्दष्टे परावरे " (मुं. २.२.८)-परस्त्रा का ज्ञान होने पर उसके सब कमी का क्षय हो जाता है “ विद्ययामृतमश्नुते " (ईशा. ११. मन्यु. ७.६)-विद्या से अमृतत्व मिलता है;" तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति नान्यः पन्या विद्यतेऽयनाय " (श्वे. ३.८)-परमेश्वर को जान लेने से अमरत्व मिलता है, इसको छोड़ मोक्ष प्राप्ति का दूसरा मार्ग नहीं है । और शास्त्र-दृष्टि से विचार करने पर भी यही सिद्धान्त दृढ़ होता है, क्योंकि दृश्य-सृष्टि में जो कुछ है वह सव यद्यपि कर्म मय है, तथापि इस सृष्टि के आधारभूत परब्रह्म की ही वह सव लीला है, इस. लिये यह स्पष्ट है कि कोई भी कर्म परब्रह्म को बाधा नहीं दे सकते अर्थात् सब कमी को करके भी परब्रह्म अलिप्त ही रहता है। इस प्रकरण के प्रारम्भ में बतलाया जा चुका है कि अध्यात्मशास्त्र के अनुसार इस संसार के सब पदार्थों के, कर्म (माया) और ब्रह्म दो ही वर्ग होते हैं । इससे यही प्रगट होता है कि इनमें से किसी एक वर्ग से अर्थात् कर्म से छुटकारा पाने की इच्छा हो तो मनुष्य को दूसरे वर्ग में अर्थात् ब्रह्म-स्वरूप में प्रवेश करना चाहिये। उसके लिये और दूसरा मार्ग नहीं है, क्योंकि जब सव पदार्थों के केवल दो ही वर्ग होते हैं तय कर्म से मुक्त अवस्था सिधा ब्रह्म-स्वरूप के और कोई शेष नहीं रह जाती। परन्तु ब्रह्म स्वरूप की इस 6 M