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पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/३९४

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संन्यास और कर्मयोग। ३५५ (१२) यह मार्ग अनादि और श्रुति- (१२) यह मार्ग अनादि और श्रुति- स्मृति-प्रतिपादित है। स्मृति-प्रतिपादित है। (१३) शुक-याज्ञवल्क्य श्रादि इस (१३) व्यास-वसिष्ठ-जैगोपन्य आदि मार्ग ले गये हैं। और जनस-प्रीकृष्ण प्रभृति इल मार्ग से गये हैं। अन्त में मोक्ष। ये दोनों मार्ग अथवा निष्टा बह्मविद्यामूलक हैं। दोनों शोर मन की निकाम अवस्था और शान्ति एक ही प्रकार की है। इस कारण दोनों सागौ से अन्त में एक ही मोद प्राप्त हुआ करता है (गी. ५.५)। ज्ञान के पश्चात् कर्म को छोड़ वैठना, और काम्य कर्म छोड़ कर नित्य निष्काम कर्म करते रहना, यही इन दोनों में मुख्य भेद है। उपर बतलाये हुए कर्म चोड़गे और कसं करने के दोनों मार्ग ज्ञानमूलक हैं अर्थात् ज्ञान के पश्चात ज्ञानी पुरुषों के द्वारा स्वीकृत और पाचरित हैं। परन्तु कर्म छोड़ना और कर्म करना, दोनों वात ज्ञानन होने पर भी हो सकती हैं। इसलिये अज्ञान- मूलक कर्म का और कर्म के त्याग या भी यहाँ थोड़ा सा विवेचन करना आवश्यक । गीता के अठारहवें अध्याय में त्याग के जो तीन भेद यतलाये गये हैं, उनका रहस्य यही है। शान न रहने पर भी जब लोग निरे काय-देश-भय से शर्म छोड़ दिया करते हैं। इसे गीता में राजस त्याग ' कहा है (गी. १८.८)। इसी प्रकार, ज्ञान न रहने पर भी, कुछ लोग कोरी श्रद्धा से ही यश-याग प्रभृति कर्म किया करते हैं। परन्तु गीता का कथन है कि कर्म करने का यह मार्ग मोवामद नहीं लेवल स्वर्गप्रद है (गी. ६. २०)। कुछ लोगों की समझ है, कि आज कल यज्ञ-याग प्रभृति श्रौतधर्म का प्रचार न रहने के कारगा मीमांसकों के इस निरे कर्ममार्ग के सम्बन्ध में गीता का सिद्धान्त इन दिनों विशेप उपयोगो नहीं। परन्तु यह ठीक नहीं है क्योंकि श्रोत यज्ञ-याग भले ही इन गये हों पर स्मार्त यज्ञ अर्थात् चातुर्वण्य के कर्म अब भी जारी हैं। इसलिये अज्ञान से, परन्तु अद्वापूर्वक, यज्ञ-याग आदि काल्य कर्म करनेवाले लोगों के विषय में गीता का जो सिद्धान्त है, वह ज्ञान-विरहित किन्तु शहा-सहित चातुवण्यं यादि कर्म करनेवालों को भी वर्तमान स्थिति में पूर्ण- तया उपयुक्त है। जगत् के व्यवहार की भोर पष्टेि देने पर ज्ञात होगा, कि समाज में इसी प्रकार के लोगों को अर्थात शाखी पर श्रद्धा रख कर नीति से अपने-अपने कर्म करनेवालों की ही विशेष अधिकता रहती है, परन्तु उन्हें परमेश्वर का स्वरूप : पूर्णतया ज्ञात नहीं रहता इसलिये, गणित की पूरी उपपति समझे बिना ही केवल सुखान गणित की रीति से हिसाय लगानेवाले लोगों के समान, इन श्रद्धालु