पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/५३२

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उपसंहार। ४६३ ४.२) अर्थात् द्रव्य से अमृतत्व मिलने की माया नहीं है । गीता में कहा गया है कि अमतत्व प्राप्त करने के लिये सांसारिक कर्मों को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, यल्कि उन्हें निष्कामचुन्द्रि से करते ही रहना चाहिये; परन्तु ऐसा उपदेश ईसा ने कहीं भी नहीं किया है । इसके विपरीत उन्होंने यही कहा है कि सांसा- रिक संपत्ति और परमेश्वर के बीच चिरस्थायी विरोध है (मेय.६.२४), इस- लिये " मा-बाप, घर-द्वार, खो-यचों और भाई-बहिन एवं स्वयं अपने जीवन का भी द्वेष कर के जो मनुष्य मेरे साथ नहीं रहता, वह मेरा भक्त कभी हो नहीं सकता " (प्यूक. १४. २६-३३) । ईसा के शिष्य पाल का भी स्पष्ट उपदेश है कि "खियों का स्पर्श तक भी न करना सर्वोत्तम पक्ष है" (१. कारि. ७.१) इसी प्रकार हम पहले ही कह पाये हैं कि ईसा के मुंह के निकटे हुए- "हमारी जन्मदात्री माता हमारी कौन होती है ? हमारे आसपास के इश्वरभक्त ही हमारे मा-बाप और पन्धु हैं" (मेय्यू. १२. ४६-५०)-इस वाक्य में, और "कि प्रजया करिष्यामो येषां नोऽयमात्माऽयं लोकः " इस पृहदारण्यकोपनिषद् के संन्यासविषयक वचन में (पृ. ४. ४. २२) बहुत कुछ समानता है । स्वयं बाइ- पल के ही इन पाक्यों से यह सिद्ध होता है, कि जैन और बौद्ध धर्मों के सश ईसाई धर्म भी प्रारम्भ में संन्यास-प्रधान अर्थात् संसार को त्याग देने का उपदेश देनेवाला है और, ईसाई धर्म के इतिहास को देखने से भी यही मालूम होता है। कि ईसा के इस उपदेशानुसार ही पहले ईसाई धर्मोपदेशक वैराग्य से रहा करते थे- याए सो संन्यास-मागियों या हमेशा ही का उपदेश ।। शंकराचार्य का "का ते फान्ता कस्ते पुषः" यह शोक प्रसिद्ध ही है: मोर, अधयोप के रचरित (६.४५) में यह वर्णन पाया जाता है कि पुरु को गुख से "काएं गातुः ॥ सा नम" ऐसा उन्नार निकला था। † Soe l'anison's System of Ethics, (Eng.trans.)Book I. Olap 2 nd 3; osj). pp. 89-97. "Tho now ( Christian ) convorts scomod and to rononuod family and country...choir gloomy and austore aspoot, thoir ubborronse of tho common basinuss and plungurus of lifo, and thoir froqnont prodlotions of imponding calamities inspired tho pagans with tho approhonsion of somo dangor high Tonld ariso from tho now soot. » Historians' History of the World, Vol. VI. p. 318. जर्मन कवि गेटे ने अपने Faust (फास्ट ) नामक og # TE PERET _Thou shalt ronoanoo! Thnt is tlo eternal song whioh rings in ovoryono's onrs, which, our whole life-long erory hour in loarsoly singing to us." (Faust, Part I. II. 1195-1198 ) मूल ईसाई धर्म के संन्यास-प्रधान होने के विषय में कितने ही अन्य आधार और प्रमाण दिये जा सकते है।