. ७०२ गीतारहस्य अयवां कर्मयोगशास्त्र । ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेंद्रियः । युक्त इत्युच्यते योगी समलोटाश्मकांचनः ॥ ८॥ सुहन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबंधुपु । साधुम्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥ ९ ॥ 8 योगी मुजीत सततमात्मानं रहसि स्थितः। एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥१०॥ यही है । जो कहते हैं, कि गीता में अद्वैत मत का प्रतिपादन नहीं है, विशि- टाद्वैत या शुद इत ही गीता को ग्राह्य है, वे परमात्मा को एक पद नमान परं' और 'घात्मा' ऐसे दो करके 'परं' को समाहितः' का क्रिया विशेषण समझते हैं ! यह अर्थ क्लिष्ट है। परन्तु इस उदाहरण से समझ में मा जावेगा, कि साम्प्रदायिक टीकाकार अपने मत के अनुसार गीता की कैसी खींचातानी करते है। (जिसका श्रात्मा ज्ञान और विज्ञान अर्थात् विविध ज्ञान से तृप्त हो जाय, नो अपनी इन्द्रियों को जीत जे, जो कूटस्य अर्थात् मूल में जा पहुंचे और मिट्टी, पत्थर एवं सोने को एक सा मानने लगे, उसी (कर्म)योगी पुरुष को 'युक्त' अर्थात् सिद्धावस्था को पहुँचा हुआ कहते हैं। (६) सुहृद्, मित्र, शत्रु, उदासीन, मध्याय, वैप करने योग्य, बान्धव, साधु और दुष्ट लोगों के विषय में भी जिसकी बुद्धि सम हो गई हो, वही (पुरुष) विशेष योग्यता का है। [प्रत्युपकार की इच्छा न रख कर सहायता करनेवाले स्नेही को सुहृद् कहते जब दो दल हो जाये तब किसी की भी बुराई-भलाई न चाहनेवाले को उदा- सीन कहते हैं। दोनों दलों की मलाई चाहनेवाले को मध्यस्थ कहते हैं और सम्बन्धी को वन्धु कहते हैं । टीकाकारों ने ऐसे ही अर्थ किये हैं। परन्तु इन अों से कुछ मिन अर्थ भी कर सकते हैं। क्योंकि इन शब्दोंक्षा प्रयोग प्रत्येक में कुछ मिन्न अर्थ दिखलाने के लिये ही नहीं किया गया है, किन्तु अनेक शब्दों की यह योजना सिर्फ इसलिये की गई है, कि सब के मेल से व्यापक अर्थ का वोध हो जाय-उसमें कुछ भी न्यूनता न रहने पावे। इस प्रकार संवेप से यितला दिया कि योगी, योगारूड़ या युक्त किसे कहना चाहिये (गी. २.६॥ 4 और ५. २३ देखो)। और यह भी बतला दिया, कि इस कर्मयोग को सिद्ध कर लेने के लिये प्रत्येक मनुष्य स्वतन्त्र है। उसके लिये किसी का मुंह जोहने की कोई जरूरत नहीं। अब कर्मयोग की सिद्धि के लिये अपोक्षत साधन का निरूपण करते हैं-]
- (१०) योगी अर्थात् कर्मयोगी एकान्त में अकेला रह कर चित्त और भारत
संवम करे, किसी भी काम्य वासना को न रख कर, परिग्रह अर्थात् पाठ छोड़ कांके निरन्तर अपने योगाभ्यास में लगा रहे ।