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पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/१२७

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द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और धर्म ११७ , ? समझ जाये तो धर्म और ईश्वरके बारेमे मार्क्सवादका क्या रुख है और उस दृष्टिसे हमे खुद क्या करना चाहिये, यह बात अच्छी तरह साफ हो जायगी । बडे-बडे कातिकारी कहे जानेवाले भी इस सम्वन्धमे भयकर भूले करते आये है, यह तो एगेल्सने ही खुद कह दिया है। इसलिये थोडेसे स्पष्टीकरणकी जरूरत अभी है। अभीतक, हमारे जानते, इसका पूरा स्पष्टीकरण नहीं हो पाया है । यदि भगवान ऐसा हो कि मरनेके बादकी किसी दुनियाका प्रबन्ध करता हो जिसे स्वर्ग, नर्क, बैकुंठ या विहिश्त कहते है, अगर हमारी इस भौतिक दुनियाके कारवारसे उसका कोई ताल्लुक न हो, तो मार्क्सको और मार्क्सवादियोको भी उससे नाहक कलह क्यो हो जिस दुनियाका जीतेजी हमसे कोई वास्ता नहीं, जो निराली दुनिया है, मगर भौतिक नही है,' प्राध्यात्मिक है, उसकी फिक्र हम क्यो करे, अगर वह बिलकुल ही अलग और जुदी है ? अगर वह दुनिया और उसका प्रबन्धक हमारे इस भौतिक ससारके कारबारमे “दालभातमे मूसरचन्द" नहीं वनता और दखल नहीं देता, तो हम भी उसमे क्यो दखल देने जायंगे ? अगर काजीजी शहरकी फिक्रसे नाहक दुबले हो रहे थे, तो हम भी काजी क्यो बने ? हम यहाँ कुछ यत्न करते और इस प्रकार इस भौतिक ससार एव समाजको पूर्णत बदलना चाहते है। हमारे इस काममे धर्म और भगवान यदि कोई मदद न करतो भी हमे उनसे कोई शिकायत नही, गिला नही। मार्क्सवादी किसी अदृश्य तथा अलौकिक (Supernatural) शक्तिकी मदद चाहते ही नही। उन्हे इस काममे ऐसी शक्तिकी पर्वा और जरूरत नहीं है। बल्कि वे तो ऐसा मानते है कि ज्योही मददके भी नामपर किसी ऐसी शक्तिने हमारे काममे दखल दिया कि सारा गुड गोबर हुआ। वे तो ऐसी शक्तिका 'किसी भी तरह इस काममे पडना ही खतरनाक मानते है। क्योकि तब तो हमारा अपना 7 -