पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२२

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गीता-हृदय

'नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्रके ग्रन्थो,वैदिक एन रानिा बनना,कुगन एव हदीसको किताबी,वाइबिल और जेन्दप्रयेनाकी पोरितो,जैन तथा बौद्ध मतोको देगनायो और चार्वाक आदि नास्तिको उपदेगाने अलाने गत कई हजार मालके भीतर विभिन देगोम जो श्रानि-किताबें तैयार की गई है वह सबकी सब प्रापिर इन्हीं प्रग्नोमानो उतर देती है। खूबी तो यह कि उनमें बहुतेरे उतर गौर जवान पोगो समय- समय पर बदलते रहे है। कमने कम यानि-काननू ना गिनी गया समाजके लिये हमेशा एक ही तरह नहीं। वे तो समाज में गाय ही बदलते रहे है। उनकी प्रगति और ताकी समाज के साथ मी रही है। यदि इस नज़रसे देखते है तो यह समस्या और भी पनीदा हो जाती है,इसका महत्त्व और इनकी अहमियन हजार गुना बढ़ जाती है।

अध्यात्मवाद और भौतिकवाद

इन प्रश्नोपर नाचने और उनके उत्तर देनेवाले लोग दो तरह होते रहे है। चाहे उन्हें अध्यात्मवादी कहिये या नीति और एथिाम (Ethics) के पैरो और प्रचारक कहिये। मगर भारतके धर्म- गालियो और नीतिगास्मके प्राचार्योसे लेकर गोराके प्रानीन तत्त्ववेत्तानो और पश्चिमी देशोके आजतकके प्राचारशास्नोके आनार्योतन को हम पामतौरने दो ही श्रेणियोमे बाँट सकते है। इन्हीके भीतर चीनके कन्फ्यूनियन आदि सम्प्रदायोके प्रवर्तक तथा विद्वान लोग भी आ जाते है। इनमें एक दल तो उनका रहा है और है भी जो केवल अध्यात्म दृष्टि या आत्मा,परमात्मा और लोक,परलोककी दृष्टिसे, इसी सयालसे,कर्तव्य अकर्तव्य या कर्मके त्याग और करनेका निश्चय करते पाये है,करते आ रहे हैं। ऐसी हर वातमे उनको नज़र दुनियावी नफा नुकसान और हानिलाभकी कोई