३२२ गीता-हृदय शूद्र कहके पुकारा है । सत्यकामकी बात ऐसी है कि जब अपनी माता जावालासे आज्ञा लेने लगे कि मै कही ब्रह्मचारी वनके पदूं लिखूगा तो उनने पूछा कि मेरा गोत्र तो बता दे, ताकि पूछने पर कह सकूँगा। इस पर माताने कहा कि मै भी नही जानती। मैं तो नौजवानीमे इधर-उधर भटकती थी। उसी वीच तेरा जन्म हुआ और मेरा नाम जाबाला होनेसे तेरा नाम सत्यकाम जावाल रखा गया। पीछे जव सत्यकाम हारिद्रुमत गौतमके पास गये और उनके पूछने पर अपने गोत्रके बारेमें सारा हाल कह सुनाया तो गौतमने कहा कि तुम जरूर ब्राह्मण हो । क्योकि जो ब्राह्मण न हो वह ऐसी साफ बात बोल नही सकता--"नैतद ब्राह्मणो विवक्तुमर्हति" (४१४१५) । जिसके बापका ठिकाना हो उसे तो वर्ण- सकर और ज्यादेसे ज्यादा शूद्र ही कहते है । मगर उनने ब्राह्मण मान लिया। और कारण भी कितना सुन्दर है कि उसने अपना कच्चा चिट्ठा जो कह दिया । ऐसा तो शूद्र या दूसरे वर्णवाले भी कर सकते है। करते है । इसीसे मानना पडता है कि शूद्र सभी वर्गोंका रिजर्व भी माना जाता था। इस प्रकार समाजके कार्य-सचालनके लिये और उसकी पूर्ण प्रगतिके खयालसे भी समाजको चार दलोमे बाँटा गया। ऐसा करने में, जैसा कि गीताने कहा है (४११३,१८१४१-४४), आदमियोकी स्वाभाविक प्रवृ- त्तियो और सत्त्वादि गुणोका भी शुरू-शुरूमे खयाल किया गया। नहीं तो योही कैसे किसीको ब्राह्मण बना देते तो किसीको शूद्र ? यही काम करनेमें उनके शरीरोके रग (वर्ण) से भी मदद ली गई। तीनो गुणोंके रगोकी कल्पना तो उन लोगोने की थी ही । इसीलिये आदमियोके शरीरोंके रगो या वर्णों को देखनेके वाद उनके गुणो और तदनुसार स्वभावोका निश्चय करके ही उन्हें काम बाँटे गये। फिर वे अलग-अलग कर दिये गये। यदि स्वभाव एव रुचिके अनुसार काम न दिया जाता तो सब गुड
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