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"जायते वर्णसंकरः" ३२९ सभी के साथ हम अपनी तन्मयता और एकताका अनुभव करते है, अभ्यास करते हैं। यही है गीताधर्म जैसा कि कह चुके है। मगर जब अवनतिके गर्तमे जा गिरेगे तो यह बात कैसे होगी। फलत. समाज विशृखलित होके नीचे गिरेगा। फिर तो ऊपरवाले लोग या पितर भी गिरेंगे ही। वे अलग कैसे रहेगे ? देव-पितर हमसे जुदा तो है नहीं।