पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३५०

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उत्तरायण और दक्षिणायन आदि मत्रोमे भी यह बात आई है । वहाँ बहुत विस्तृत वर्णन है जो अन्य उपनिषदोमे नही है। बृहदारण्यक उपनिषदके पाँचवे अध्यायके दसवे ब्राह्मणमे थोडीसी और छठे अध्यायके दूसरे ब्राह्मणके कुल सोलह मत्रोमे यही बात आई है। हालाँकि कौषीतकीवाली कुछ ब्योरेकी बाते इसमे नही लिखी है, फिर भी बहुत विस्तृत वर्णन है। छान्दोग्योपनिषदके पाँचवे अध्यायके तीनसे लेकर दसतकके आठ खडोमे भी यह वर्णन पूरा- पूरा पाया जाता है। उसके चौथे अध्यायके १५वे खडमे भी यह बात आई है। जब ऋग्वेद जैसे प्राचीनतम ग्रन्थसे लेकर महाभारततकमे यह चीज पाई जाती है तो मानना ही होगा कि उस समय इसका पूरा प्रचार था। इसपर पूरा मनन, विचार और अन्वेषण भी उस समय जारी था। इसीलिये इस प्रश्नका महत्त्व भी बहुत ज्यादा था। यदि छान्दोग्य आदि उपनिषदोमे इस विषयका निरूपण पढे तो पता लगता है कि आरुणि जैसे महान् ऋषिको भी इसका पता न था। इसे वहाँ पचाग्नि-विद्या कहा है। साथ ही छान्दोग्य उपनिषदमे ही नक्षत्र विद्या आदि कितनी ही विद्याये (Science) गिनाई है, जिनका नाम भी हम नहीं जानते। छान्दोग्योपनिषदके सातवे अध्यायके पहले और दूसरे खडोमे नारदने सनत्कुमारसे कहा है कि ऋग्वेदादि चारो वेदो, वेदोके वेद, पाँचवे इतिहासपुराणके सिवाय, अनेक विद्याओके साथ देव- विद्या, ब्रह्मविद्या, भूतविद्या, क्षत्रविद्या, नक्षत्रविद्या, सर्पविद्या, जनविद्या और देवविद्या जानता हूँ। ये विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययन नही तो और क्या है ? मगर अन्यान्य बातोमे पतनके साथ ही इस बातमे भी हमारा पतन कुछ ऐसा भयकर हो गया कि हम ये बाते पीछे चलके कतई भूल गये। आज तो यह हालत है कि इन्हे हम केवल धर्म, बुद्धिसे ही मानते है, सो भी इसीलिये कि हमारी पोथियोमे लिखी है। मगर इनके बारेमे न तो सोच सकते और न कोई दार्शनिक युक्ति ही दे सकते है ।