सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पहला अध्याय ४०३ अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥११॥ (इसलिये) जिसकी जो जगह ठीक हुई है उसीके अनुसार आप सभी लोग नाकोपर डेंट रहके केवल भीष्मकी ही रक्षा करे ।११। तस्य संजनयन्हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः । सिंहनादं विनद्योच्चैः शंखं दध्मौ प्रतापवान् ॥१२॥ (इतने हीमे) दुर्योधनको खुश करनेके लिये सभी कौरवोमें बडे बूढे और प्रतापशाली भीष्मपितामहने सिहकी तरह जोरसे गर्जकर (अपना) शख फूका (शख फूंकना युद्धारम्भकी सूचना है)।१२। ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः। सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥१३॥ उसके बाद एक-एक शख, नफीरी (शहनाई), छोटे-बड़े नगाड़े और गोमुखी (ये सभी बाजे) बज उठे (और) वह आवाज गूंज उठी ।१३। ततः श्वेतहयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पांडवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः ॥१४॥ उसके बाद सफेद घोडे जुते बडे रथमे बैठे हुए कृष्ण और अर्जुनने भी अपने दिव्य-अलौकिक या असाधारण -शख (प्रतिपक्षियोके उत्तरमे) पूँके ।१४॥ पाचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः। पौंडूं दध्मौ महाशंख भीमकर्मा वृकोदरः॥१५॥ कृष्णने पाचजन्य, अर्जुनने देवदत्त और भयकर काम कर डालनेवाले भीमसेनने रोड नामक बडा शख फूंका। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥१६॥