पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/४५३

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४६० गीता-हृदय भी कदम बेकार नही जाता । इसी प्रकार महान् भयसे रक्षाका भी यही अभिप्राय है कि जैसे और कामोमें खतरे हुआ करते है और अगर किसी आफतसे बचनेके लिये कोई उपाय किया जाय तो जब तक वह पूरा न हो जाय उस आफतसे छुटकारा नही होता, सो वात यहाँ नही है । न तो यहाँ कोई खतरा है और न यही बात कि काम पूरा न हुआ तो आफतसे पिड न छूटेगा । यहाँ तक कि आवागमन जैसे बडीसे वडी बलासे भी छुडा लेता है इस चीजका थोडा भी अनुष्ठान । फिर तो निर्वाणमुक्ति ध्रुव हो जाती है। व्यवसायात्मिका बुद्धिरेफेह कुरुनन्दन ! बहुशाखा ह्यनन्ताश्च वुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥४१॥ हे कुरुनन्दन (अर्जुन), इसमें तो एक ही (तरह) की बुद्धि रहती है (सो भी) निश्चयात्मक । (विपरीत इसके और मार्गमें) अनिश्चयात्मक बुद्धिवालोकी बुद्धियाँ (एक तो) असख्य होती है । (दूसरे उनमें भी हरेककी) अनेक शाखा प्रशाखाये होती है ।४१॥ यामिमा पुष्पिता वाच प्रवदन्त्यविपश्चितः । वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥४२॥ कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् । क्रियाविशेषबहुला भोगैश्वर्यगति प्रति ॥४३॥ भोगैश्वर्यप्रसक्ताना तया पहृतचेतसाम् । व्यवसायात्मिका बुद्धि समाधौ न विधीयते ॥४४॥ हे पार्थ, वेदके कर्म-प्रशसक वचनोको ही सब कुछ मानके उनके अलावे असल चीज दूसरी हई नही ऐसा कहनेवाले, वासनानोमें डूबे हुए मनवाले और स्वर्गको ही अन्तिम ध्येय माननेवाले नासमझ लोग इस तरहके जिन लुभावने (वैदिक) वाक्योको दुहराते रहते है उन (वचनोका तो 'सिर्फ यही काम है कि) भोग और शासनकी प्राप्तिके लिये ही अनेक