पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/५७५

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५८४ गीता-हृदय ही वे सभी तैयार होते है ऐसा जान लो; (क्योकि) ऐसा जाननेसे ही होगे ।३२॥ श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञ परन्तप । सर्व कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥३३॥ हे परन्तप, घृतादि भौतिक पदार्थोंसे किये जानेवाले यज्ञोकी, अपेक्षा ज्ञानयज्ञ कही अच्छा है । (क्योकि) हे पार्थ, (आखिर) सभी कर्मोका अन्तिम ध्येय ज्ञान ही तो है और ज्ञानसे ही कर्मोका खात्मा भी होता है ।३३॥ तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ॥३४॥ तो यह याद रखो, नम्रतापूर्वक शरणमें जाने, (यथाशक्ति) सेवा करने (और अवसर पाके) पूछनेपर ही तत्त्वदर्शी ज्ञानी जन तुम्हें ज्ञानका उपदेश करेंगे ।३४॥ 'यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेव यास्यसि पांडव । येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥३५॥ हे पाडव, जिस ज्ञानको हासिल कर लेनेसे तुम्हें ऐसा मोह न होगा (और) जिसके चलते सभी पदार्थोंको अपने आपमें देखोगे और मुझमें भी।३५॥ अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः। सवं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥३६॥ अगर तुम सभी पापियोसे कही बढ-चढके भी पापी हो (तो भी)सभी पापो-पाप-समुद्र-को इस ज्ञानकी नावसे ही पार कर जाओगे ॥३६॥ यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मात्कुरुतेऽर्जुन । ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरते तथा ॥३७॥ हे अर्जुन, जिस तरह धधक् जलनेवाली आग समूचा ईधन (बातकी