पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/६४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सातवाँ अध्याय ६५६ (6 11 वैज्ञानिक बताते है, तो भी क्या ? प्रकाश निकाश लेने पर इन दोनोको चन्द्र और सूर्य तो कोई भी न कहेगा। वस यहाँ यही आशय है। हिन्दू लोग वेदोको सर्वमान्य और सर्वश्रेष्ठ कहते है । उन्हे ज्ञानागार भी मानते है । असलमे वेद शब्दका अर्थ ही है ज्ञान या ज्ञान देनेवाला। इसीलिये वेद कहनेसे सभी सद्ग्रन्थो और ज्ञान देनेवाली पोथियोसे मतलव होता है । फिर चाहे वह किसी धर्मकी हो, या उन्हे धर्मसे कोई वास्ता न भी हो, और केवल औषधियो आदिकी हजारो वैज्ञानिक जानकारियाँ कराये । पुराने लोग प्रणव या ॐकारको ही सब वेदोका निचोड मानते थे, ॐकार सर्ववेदाना सारस्तत्त्वप्रकाशक । ॐमे भी अ, उ, म् ये तीन अक्षर माने गये है, जिनमे प्रधानता प्रकारकी ही है । अकार ही समस्त व्यजनोके उच्चारणका सहायक माना गया है। ऐसा भी लगता है कि सभी स्वर अक्षरोके मूलमे यह अकार ही है । क्योकि उनके उच्चारण- मे पहले अकारका ही आभास होता है। अब तो नई वर्णमालामे इस प्रकारसे ही शेष स्वरोको बनाने भी लगे है। इस प्रकार सभी अक्षरोके मूलमे अकारके होनेसे और सभी ग्रन्थोके इन अक्षरोसे ही वने होनेके कारण मवोके मूलमे यह अकार आ जाता है, और वही है अात्माका रूप । पुरुषोमे पौरुष या मर्दोमे मर्दानगी, तपस्वियोमे तप, बलवानोमे वल, तेजस्वियोमे तेज और बुद्धिमानोमे बुद्धि यही पांच चीजे और भी ली गई है। अमलमे अर्जुन जैसे तेजस्वी, वली बुद्धिमान और मर्दका खयाल वरके ही ये बाते कही गई है । वह तो तप करनेके लिये भी जगलकी शरण लनेको नेवार ही था। इसीलिये तप भी आ गया है। इन पांचोकी दुनिया भी बड़ी कद्र है । अर्जुन भी कही समझता हो कि मै भी कुछ हूँ। इमलिये माफ ही कह दिया कि ये सभी चीजे परमात्मा स्पी ही है। फिर तुम्हारी अन्नग हल्ली हई क्या ? तुम न्वतत्र करी क्या सकते हो इन गभी पदार्थोके सिलमिले में दोई वाते और आई है। एक तो ?