पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/७

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देखते हुए आज उल्टे खुश हो रहा है। क्योंकि उस समय कुछ लिखने तो आज पछताना ही होता । अब जो कुछ लिखा है और लिख रहा हूं यही ठीक है पहले यह हर्गिण लिखा न जाता। हमारी हालत यह है कि हम गीता कीक्ष टीका और और बीच में बैठक ही गीता का अर्थ समझना चाहते हैं। यही कारण है कि उसे ठीक समझ पाते नहीं। बच्चेको हो