पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/७६१

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बारहवाँ अध्याय ७८१ यद्यपि इन श्लोकोमे सम शब्द दोई बार आया है और उसीके अर्थमें तुल्य एक वार आया है, तथापि अन्तके सात श्लोक समदर्शनका ही चित्रण करते है और यही है आत्मज्ञान । इस अध्यायमे प्रतिपादित भक्ति- का रहस्य तो बताई चुके है और वही इसका विषय है । इति श्री० भक्तियोगो नाम द्वादशोऽध्यायः ॥१२॥ श्री० जो श्रीकृष्ण और अर्जुनका सवाद है उसका भक्ति- योग नामक बारहवां अध्याय यही है ।