पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/८००

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८२० गीता-हृदय बर+पारोहसे ही वरारोह बनके बरोह हो गया। वर कहते है ऊपरको। यह बात कितनी खूबीके साथ जगत्से मिलती है। ऊपर ठहरा ब्रह्म। वहीसे जगत्की सारी जडें निकली तथा फैली है। यदि इन जडोका पता लगाना है तो ऊपर जायें । तभी इन्हे पायेगे और काट देगे। ऊपर जाने या ससार के पदार्थोसे अलग होने में अगर हजार ढगके ताल्लुक वाधक है, तो वैराग्यकी शरण लें और मनको इनसे हटायें । इनमें आसक्तिका त्याग करें। यही त्याग तलवारका काम करता है इन्हे काट डालनेमे, ताकि ऊपर जा सके। विना इसके वह मूलाधार ब्रह्म मिलनेका नही । इस तरह इसके काटनेका उपाय बताया है सही। फिर भी यह है दरअसल लोहेका चना । सासारिक वासनाये इतनी मजबूतीसे जकडी और चारो ओर फैली है कि इनसे पिंड छुडाना मुश्किल है । इस तरह ससारके पार जाना वैराग्य और विवेकके सहारे आसान भी है और मुश्किल भी। क्योकि जही जाइये एक फन्दा लगा है और हम उसीमे फंस जाते है। कहते है कि किसी अच्छे पडितने मौतसे पहले ही किसी प्रकार यह जान लिया कि मरनेपर सूअरका शरीर पाऊँगा । उनने अपने बच्चोको यह बात कह दी। यह भी बता दिया कि कहाँ कुब सूअरका शरीर मिलेगा। उनने पहचान भी बता दी कि फला-फलाँ चिह्न होगे, ताकि लडके बेखटके पहचान सकें। फिर उनने कहा कि वह योनि तो बडे कष्टकी है, यह जानते ही हो। इसलिये पता लगाके फौरन मार देना, ताकि कष्ट- मय जीवनसे चटपट छुटकारा हो जाय । पीछे जब वह मर गये तो ठीक समयपर खोजते-पूछते उनके लडके उस मुकामपर पहुंची तो गये जहाँ वह सूअर बने विचरते थे । ढूंढते-ढूंढते उनने पता भी पा लिया कि हो न हो, यही वह सूअर है। उसके बाद उसके मालिकसे बाते करके सूअरके मारनेका हर्जाना भी तय कर लिया। बादमें तलवार लेके उसके पास पहुँचे ही थे कि खत्म कर दे कि वह गिडगिडाके बोल उठा कि “नही-नही,