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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१५९

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मंदिर और मसजिद
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की उसने जड़ काट दी! वह उसकी आस्तीन का साँप निकला! रुँधे हुए कंठ से बोला––सरकार, मुझसे बढ़कर अभागा और कौन होगा। मेरे मुँह में कालिख लग गयी।

यह कहते-कहते ठाकुर ने कमर से छुरा निकाल लिया। वह अपनी छाती में छुरा खोंसकर कालिमा को रक्त से धोना ही चाहते थे कि चौधरी साहब ने लपककर छुरा उनके हाथों से छीन लिया और बोले––क्या करते हो, होश सँभालो। ये तकदीर के करिश्मे हैं, इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं। खुदा को जो मंजूर था वह हुआ। मै अगर खुद शैतान के बहकाने मे आकर मंदिर मे घुसता और देवता की तौहीन करता, और तुम मुझे पहचानकर भी कत्ल कर देते, तो मैं अपना खून माफ कर देता। किसी के दीन की तौहीन करने से बड़ा और कोई गुनाह नहीं है। गो इस वक्त मेरा कलेजा फटा जाता है, और यह सदमा मेरी जान ही लेकर छोड़ेगा, पर खुदा गवाह है कि मुझे तुमसे जरा भी मलाल नहीं है। तुम्हारी जगह मैं होता, तो मैं भी यही करता, चाहे मेरे मालिक का बेटा ही क्यों न होता। घरवाले मुझे तानों से छेदेंगे, लड़की रो-रोकर मुझसे खून का बदला माँगेगी, सारे मुसलमान मेरे खून के प्यासे हो जायेंगे, मैं काफिर और बेदीन कहा जाऊँगा, शायद कोई दीन का पक्का नौजवान मुझे कत्ल करने पर भी तैयार हो जाय, लेकिन मैं हक से मुँह न मोड़ूँगा। अँधेरी रात है, इसी दम यहाँ से भाग जाओ, और मेरे इलाके में किसी छावनी में छिप जाओ। वह देखो, कई मुसलमान चले आ रहे हैं––मेरे घरवाले भी हैं––भागो, भागो!

साल भर भजनसिंह चौधरी साहब के इलाके में छिपा रहा। एक ओर मुसलमान लोग उसकी टोह में लगे रहते थे, दूसरी ओर पुलिस। लेकिन चौधरी उसे हमेशा छिपाते रहते थे। अपने समाज के ताने सहे, अपने घरवालों का तिरस्कार सहा, पुलीस के वार सहे, मुल्लाओं की धमकियाँ सहीं, पर भजनसिंह की खबर किसी को कानों-कान न होने दी। ऐसे वफादार स्वामिभक्त सेवक को वह जीते जी निर्दय कानून के पंजे मे न देना चाहते थे। उनके इलाके की छावनियों में कई बार तलाशियाँ हुईं, मुल्लाओं ने घर के नौकरों, मामाओं, लौंडियों को मिलाया। लेकिन चौधरी ने ठाकुर को अपने एहसानों की भाँति छिपाये रक्खा।

लेकिन ठाकुर को अपने प्राणों की रक्षा के लिए चौधरी साहब को संकट में