पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
गुप्त धन
 

लेकर मैदान मे लडती थी, दहकती हुई चिता में हँसते-हँसते बैठ जाती थी। उसे उस वक्त ऐसा मालूम हुआ कि मिस्टर व्यास सामने खड़े है और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा कर रहे हैं। कह रहे है, क्या तुम मेरे खून का बदला न लोगी? मेरी आत्मा प्रतिशोध के लिए तड़प रही है। क्या उसे हमेशा-हमेशा यों ही तडपाती रहोगी? क्या यही वफा की शर्त थी? इन विचारो ने माया की भावनाओं को भडका दिया। उसकी आँखे खून की तरह लाल हो गयी, होंठ दाँतों के नीचे दब गये और कटार के हत्थे पर मुट्ठी बंध गयी। एक उन्माद-सा छा गया। उसने कमरे के अन्दर पैर रखा मगर ईश्वरदास की आँखे खुल गयी थीं। कमरे में लालटेन की मद्धिम रोशनी थी। माया की आहट पाकर वह चौका और सिर उठाकर देखा तो खून सर्द हो गया—माया प्रलय की मूर्ति बनी हाथ में नंगी कटार लिये उसकी तरफ चली आ रही थी!

वह चारपाई से उठकर खड़ा हो गया और धबडाकर बोला—क्या है बहन? यह कटार क्यों लिये हुए हो?

माया ने कहा—यह कटार तुम्हारे खून की प्यासी है क्योकि तुमने मेरे पति का खून किया है।

ईश्वरदास का चेहरा पीला पड गया। बोला—मैंने!

"हाँ तुमने, तुम्ही ने लाहौर मे मेरे पति की हत्या की, जब वे एक मुकदमे की पैरवी करने गये थे। क्या तुम इससे इनकार कर सकते हो? मेरे पति की आत्मा ने खुद तुम्हारा पता बतलाया है।'

'तो तुम मिस्टर व्यास की बीवी हो?'

'हाँ, मैं उनकी बदनसीब बीवी हूँ और तुम मेरा सोहाग लूटनेवाले हो! जो तुमने मेरे ऊपर एहसान किये हैं लेकिन एहसानों से मेरे दिल की आग नहीं बुझ सकती। वह तुम्हारे खून ही से बुझेगी।'

ईश्वरदास ने माया की ओर याचना-भरी आँखों से देखकर कहा—अगर आपका यही फैसला है तो लीजिए यह सर हाजिर है। अगर मेरे खून से आपके दिल की आग बुझ जाय तो मैं खुद उसे आपके कदमों पर गिरा दूंगा। लेकिन जिस तरह आप मेरे खून से अपनी तलवार की प्यास बुझाना अपना धर्म समझती है उसी तरह मैने भी मिस्टर व्यास को कत्ल करना अपना धर्म समझा। आपको मालूम है, वह एक राजनीतिक मुकदमे की पैरवी करने लाहौर गये थे। लेकिन मिस्टर व्यास ने जिस तरह अपनी ऊँची कानूनी लियाकत का इस्तेमाल किया, पुलिस को झूठी शहादतों के तैयार करने में जिस तरह मदद दी, जिस बेरहमी और बेदर्दी से