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पं० प्रतापनारायण मिश्र बर्ताव रखा, इन बातोंका वर्णन क्या लाभ-शून्य होगा ? विद्या जानकारीका नाम है, फिर क्या मनुष्यका वृत्तान्त जानना विद्या नहीं है ? हमारी समझमें तो जितने मनुष्य हैं, सबका जीवन-चरित्र लेखनीवद्ध होना चाहिये। इससे बड़ा लाभ एक यही होगा कि उसकी भलाइयोंको ग्रहण करके, बुराइयोंसे बचके, दृमरे सैकड़ों लोग अपना भला कर मकते हैं। हमारे देशमें यह लिखनेकी चाल नहीं है, इससे बड़ी हानि होती है । मैं उनका बड़ा गुण मानूंगा, जो अपना वृत्तान्त लिखके मेरा माथ दंगे। जिसके अनेक मधुरफल लेखकोंको यदि न भी मिल, तो भी बहुत दिनों तक बहुत-से लोग बहुत कुछ लाभ उठावगे। देश-भक्तोंके लिये यही बात क्या थोड़ी है ? इसमें कोई गुण वा दोष घटाने-बढ़ानेका व कोई बात छिपानेका विचार नहीं है। सच्चा-सच्चा हाल लिवूगा। इससे पाठक महोदय, यह न समझ कि किसीपर आक्षेप व किसीकी प्रशंसादि करूंगा। यदि किसी स्थानपर नीरसता आ जाय तो भी आशा है क्षमा कीजियेगा, क्योंकि यह कोई प्रस्ताव नहीं है कि लेग्व-शक्ति दिखाऊँ, यह जीवन-चरित्र है। _____ अपना जीवन-चरित्र लिखनेसे पहले अपने पूर्व पुरुषोंका परिचय देना योग्य समझके यह बात सच्चे अहंकारसे लिखना ठीक है, कि हमारे आदि पुरुष भगवान विश्वामित्र बाबा हैं, जिनके पिता गाधि महाराज और पितामह कुशिक महाराजादि कान्यकुब्ज देशके राजा थे। पर हमारे बाबाने राज्यका झगड़ा छोड़छाड़के निज तपोबलसे ब्रह्मऋषिकी पदवी ग्रहण की और यहां तक प्रतिष्ठा पाई कि सप्त-महर्षियोंमें चौथे ऋषि हुए । कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ-यह सार्षि हैं। राज्य छोड़नेपर भी राजसी ढङ्ग नहीं छोड़ा ! यदि सातों ऋषियोंकी मूर्ति बनाई जाय तो क्या अच्छा दृश्य होगा कि तीन ऋषि इस पाश्वमें होंगे, तीन उस पार्श्वमें और बाबा मध्यमें। निज तपोबलसे उन्होंने