गुप्त-निषन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास सरकारी दफ्तरोंकी जैसी भाषा होती थी, वैसेही उसकी भाषा कभी कभी होती है। कभी खासी हिन्दी भी होती है। इसका विशेष कारण यह है कि वह आस पासके दो चार जिलोंका लोकल अखबार है । स्थानीय समाचार उसमें बहुत होते हैं। उनसे जब कुछ जगह वच रहती है, तब वह और इधर उधरकी बात लिखता है। प्रान्तिक समाचार पत्रोंको उचित भी यही है कि वह अपने प्रान्तके समाचारों पर अधिक जोरद। अलमोड़ा अग्वबारके इस गुणकी हम प्रशंसा करते हैं । दुःख यही है कि उसके चलानेवाले समयके अनुसार उसकी कुछ उन्नति नहीं कर सकते, नहीं तो उसका प्रचार अधिक हो सकता और उसकी ऐसी दशा न रहती। वह अधिक अपने आसपासके जिलोंहीमें बिकता है और पहाड़ी सरकारी कर्मचारियों आदिमें उसकी अधिक खपत है। उन्हींके भरोसे वह चलता है । यही कारण है कि उसकी दशा नहीं सुधरती । उसमें एक विशेप गुण यह है कि किसीसे किसी बातपर लड़ता झगड़ता नहीं। निरीह साधु लोगोंकी भांति जीवन बिताता है। वह हिन्दू है, क्योंकि उसके ऊपर श्रीगणेशकी मूर्ति छपती है और समाज सुधारक भी है क्योंकि अब्दुल गफूरके धर्मपाल होनेपर प्रसन्न होता है और विधवाविवाहका बड़ा प्रेमी है। साथही साधु भी है, क्योंकि स्वामी विवेकानन्द और उनके मठपर उसकी बड़ी श्रद्धा है। ____ अलमोड़ा अखबारके पीछे कलकत्तसे “हिन्दीदीप्रिप्रकाश” नामका एक साप्ताहिक पत्र निकला। उसको मूल्य १।।) वार्षिक था। हमने उसे कभी नहीं देखा न उसके विपयमें कुछ जानते हैं। बाबू राधाकृष्णदासने अपने हिन्दी समाचार पत्रोंके इतिहासमें उसके विषयमें जो कुछ लिखा है उससे विदित होता है कि उसके जन्मदाता स्वर्गीय बाबू कार्तिकप्रसाद थे। उस समय कलकत्तमें रहनेवाले हिन्दुस्थानी इतना भी न जानते थे कि अखबार किस चिड़ियाका नाम है। केवल दो चार सजन उसका [ ३२६ ]
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