हिन्दी-अखबार
विजयते” लिग्वा है। यही उदयपुर राज्यका “श्रीगणशाय नमः" है। क्योंकि
एकलिङ्गजी वहाँके इष्टदेव हैं । उनके नीचे अगरेजी अक्षरों में अर्द्धचन्द्रा-
कार पत्रका नाम दिया गया है। उसके नीचे मेवाड़का राज्य चिन्ह है,
जो घिस पिस कर ऐसा हो गया है कि उममेंसे कोई बात पहचानमें
नहीं आती। मालूम नहीं कि जबसे पत्र जारी हुआ है, यह चिन्ह दृमरी
वार बनवाया गया या नहीं। राज्य चिन्हक नीचे पत्रका नाम देवनागरी
अक्षरों में दिया गया है। नीचे लिग्वा है .. “यह राज्य चिन्ह सूर्यवंशी
महाराणा भेद पाटेश्वरका है। श्रीसूर्य्यसेही महाराणाओंका सूर्यवंश
चला है और दाई बाईं तरफ अत्रिय और भीलक जो दो चित्र हैं, राज्य
सेवामें विद्यमान रहते हैं।" इतना लिख्ख कर नीचे “सत्यवार्ताकी सूचना"
लिखी है अर्थात् इस ऊपरकी बातका अर्थ ग्बोल कर समझाया है, वह
इस प्रकार है -“सूर्य आदि लोकोंका एक एक स्वामी वा अधिकारी है।
जिस प्रकार भरतखण्ड और इंगलेण्डक श्रीमान राजराजेश्वर अधिकारी
हैं। (शायद यहां पहले श्रीमती राजराजेश्वरी लिखा होगा क्योंकि
पत्र जारी होनेक ममय तो श्रीमान राजराजेश्वर अधिकारी थे नहीं)
कोई समय ऐसा था कि सूर्य चन्द्र आदि लोकोंमें किसी प्रकारसे
महात्मा लोगोंका आना जाना होता था और उन्हीं सूर्य चन्द्र और
अग्निसे पृथिवीके सब क्षत्रियोंक वंश चले हैं, जिनमेंसे श्रीमहाराणा उदय-
पुर, जयपुर और जोधपुर आदि सूर्यवंशी हैं। करौलीके राजा चन्द्रवंशी
और भदावरके राजा अग्निवंशी हैं ।” राज्य चिन्हकी बात इस भाषा
और परिभाषासे पाठक कुछ समझ ही गये होंगे, बाकी हम समझा देते
हैं। चिन्हके बीच में सूर्य्यकी मूर्ति है और उसके ऊपर एक लिङ्गजीका
स्वरूप बना हुआ है-दाएं बाएं एक झील और एक राजपूतकी मूर्ति है
और नीचे हिन्दीमें लिखा है ---
“जो हठ रक्खे धर्म की तिहि रक्खे करतार ।”
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३८४
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