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पृष्ठ:गोदान.pdf/११७

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गोदान :117
 


बेटी, तुझे कुछ मालूम है, गोबर किधर गया।

झुनिया ने सिसकते हुए कहा-मुझसे तो कुछ नहीं कहा। मेरे कारन तुम्हारे ऊपर...यह कहते-कहते उसकी आवाज आंसुओं में डूब गई।

होरी अपनी व्याकुलता न छिपा सका।

'जब तूने आज उसे देखा, तो कुछ दु:खी था?'

'बातें तो हंस-हंसकर कर रहे थे। मन का हाल भगवान् जाने।'

'तेरा मन क्या कहता है, है गांव में ही कि कहीं बाहर चला गया?'

'मुझे तो शंका होती है, कहीं बाहर चले गए हैं।'

‘यही मेरा मन भी कहता है, कैसी नादानी की। हम उसके दुसमन थोड़े ही थे। जब भली या बुरी एक बात हो गई, तो वह निभानी पड़ती है। इस तरह भागकर तो उसने हमारी जान आफत में डाल दी।

धनिया ने झुनिया का हाथ पकड़कर अंदर ले जाते हुए कहा-कायर कहीं का जिसकी बांह पकड़ी, उसका निबाह करना चाहिए कि मुंह में कालिख लगाकर भाग जाना चाहिए। अब जो आए, तो घर में पैठने न दूं।

होरी वहीं पुआल पर लेटा। गोबर कहां गया? यह प्रश्न उसके हृदयाकाश में किसी पक्षी की भांति मंडराने लगा।


ग्यारह

ऐसे असाधारण कांड पर गांव में जो कुछ हलचल मचनी चाहिए, वह मची और महीनों तक मचती रही। झुनिया के दोनों भाई लाठियां लिए गोबर को खोजते फिरते थे। भोला ने कसम खाई कि अब न झुनिया का मुंह देखेंगे और न इस गांव का। होरी से उन्होंने अपनी सगाई की जो बातचीत की थी, वह अब टूट गई। अब वह अपनी गाय के दाम लेंगे और नकद, और इसमें विलंब हुआ तो होरी पर दावा करके उसका घर-द्वार नीलाम करा लेंगे। गांव वालों ने होरी को जाति-बाहर कर दिया। कोई उसका हुक्का नहीं पीता, न उसके घर का पानी पीता है। पानी बंद कर देने की कुछ बातचीत थी. लेकिन धनिया का चंडी-रूप सब देख चुके थे, इसलिए किसी को आगे आने की हिम्मत न पड़ी। धनिया ने सबको सुना-सुनाकर कह दिया किसी ने उसे पानी भरने से रोका, तो उसका और अपना खून एक कर देगी। इस ललकार ने सभी के पित्ते पानी कर दिए। सबसे दुखी है झुनिया, जिसके कारण यह सब उपद्रव हो रहा है, और गोबर की कोई खोज खबर न मिलना, इस दु:ख को और भी दारुण बना रहा है। सारे दिन मुंह छिपाए घर में पड़ी रहती है। बाहर निकले तो चारों ओर से वाग्बाणों की ऐसी वर्षा हो कि जान बचना मुश्किल हो जाय। दिन-भर घर के धंधे करती रहती है और जब अवसर पाती है, रो लेती है। हरदम थर-थर कांपती रहती है कि कहीं धनिया कुछ कह न बैठे। अकेला भोजन तो नहीं पका सकती क्योंकि कोई उसके हाथ का खायगा नहीं, बाकी सारा काम उसने अपने ऊपर ले लिया। गांव में चार स्त्री-पुरुष जमा हो जाते हैं, यही