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304 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


दूसरे दिन गोबर ने मालती के यहां काम करना शुरू कर दिया। उसे रहने को एक कोठरी भी मिल गई। झुनिया भी आ गई। मालती बाग में आती तो झुनिया का बालक धूल-मिट्टी में खेलता फिरता। एक दिन मालती ने उसे एक मिठाई दे दी। बच्चा उस दिन से परच गया। उसे देखते ही उसके पीछे लग जाता और जब तक मिठाई न ले लेता, उसका पीछा न छोड़ता।

एक दिन मालती बाग में आई तो बालक न दिखाई दिया। झुनिया से पूछा तो मालूम हुआ। बच्चे को ज्वर आ गया है।

मालती ने घबराकर कहा-ज्वर आ गया। तो मेरे पास क्यों नहीं लाई? चल देखूं।

बालक खटोले पर ज्वर में अचेत पड़ा था। खपरैल की उस कोठरी में इतनी सील, इतना अंधेरा, और इस ठंड के दिनों में भी इतने मच्छर कि मालती एक मिनट भी वहां न ठहर सकी, तुरंत आकर थर्मामीटर लिया और फिर जाकर देखा, एक सौ चार था। मालती को भय हुआ कहीं चेचक न हो। बच्चे को अभी तक टीका नहीं लगा था। और अगर इस सीली कोठरी में रहा, तो भय था, कहीं ज्वर और न बढ़ जाय।

सहसा बालक ने आंखें खोल दीं और मालती को खड़ी पाकर करुण नेत्रों से उसकी ओर देखा और उसकी गोद के लिए हाथ फैलाए। मालती ने उसे गोद में उठा लिया और थपकियां देने लगी।

बालक मालती की गोद में आकर जैसे किसी बड़े सुख का अनुभव करने लगा। अपने जलती हुई उंगलियों से उसके गले की मोतियों की माला पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। मालती ने नेकलेस उतारकर उसके गले में डाल दी। बालक की स्वार्थ प्रकृति इस दशा में भी सजग थी। नेकलेस पाकर अब उसे मालती की गोद में रहने की कोई ऐसी जरूरत न रही। यहां उसके छिन जाने का भय था। झुनिया की गोद इस समय ज्यादा सुरक्षित थी।

मालती ने खिले हुए मन से कहा-बड़ा चालाक है। चीज लेकर कैसा भागा।

झुनिया ने कहा-दे दो बेटा, मेम साहब का है।

बालक ने हार को दोनों हाथों से पकड़ लिया और मां की ओर रोष से देखा।

मालती बोली-तुम पहने रहो बच्चा, मैं मांगती नहीं हूं।

उसी वक्त बंगले में आकर उसने अपना बैठक का कमरा खाली कर दिया और उसी वक्त झुनिया उस नए कमरे में डट गई।

मंगल ने उस स्वर्ग को कौतूहल-भरी आंखों से देखा। छत में पंखा था, रंगीन बल्ब थे दीवारों पर तस्वीरें थीं। देर तक उन चीजों को टकटकी लगाए देखता रहा। मालती ने बड़े प्यार से पुकारा-मंगल!

मंगल ने मुस्कराकर उसकी ओर देखा, जैसे कह रहा हो-आज तो हंसा नहीं जाता मेमसाहब! क्या करूं आपसे कुछ हो सके तो कीजिए।

मालती ने झुनिया को बहुत-सी बातें समझाईं और चलते-चलते पूछा-तेरे घर में कोई दूसरी औरत हो, तो गोबर से कह दे, दो-चार दिन के लिए बुला लावे। मुझे चेचक का डर है। कितनी दूर है तेरा घर?

झुनिया ने अपने गांव का नाम और घर का पता बताया। अंदाज से अट्ठारह-बीस कोस होंगे।

मालती को बेलारी याद था। बोली-वही गांव तो नहीं, जिसके पश्चिम तरफ आध मील