८८ [गोरख-वानी रस-कुस बहि गईला रहि गईला५ सार। बदंत गोरपनाथ गुर जोग अपार । ५। आदिनाथ नाती मछिन्द्रनाथ पूता। पटपदी भणीले गोरप अवधूता' ।६। ॥२॥ . सुणों हो मछिन्द्र गोरप बोलै, अगम गर्वन कहूँ हेला। निरति करी नै नीकां सुरिणज्यौ५, तुम्हे सतगुर मैं चेत्ला । टेक ॥ कांमनी बहता जोग न होई, भंग मुप परलै केता। जहां उप तहां फिरि आवटै९०, च्यंतामनि११ चित एता१२ ॥ १। पानी में मिला कर विधि विशेप से छान कर निकाले पानी को कहते हैं। यहाँ उसका उलटा अयं जान पड़ता कुछ वस्तुएँ ऐसी होती है जिनमें यहने या नष्ट हो जाने वाले अंश के साथ तन्य पदार्थ निकल जाता है, कुछ ऐसी जिनमें उस.अंश के निकल जाने के याद भी तत्व वस्तु यनी रहती है। ऐसे हो, कुछ मतों में सार पस्तु का प्रहण न होकर बाहरी अनावश्यक पातों का ग्रहण होता है, और चूसरों में यल सार तत्य का प्रहण होता है, याहरी घनायरमक यातों का नहीं। योग मठ इसी दूसरे प्रकार का है। पालै नष्ट हो गए । श्रावट मावर्तन करता है, पर लगाता चिंतामनि...एता-चित्त को हननी घेतावनी (चिंताय (म) यी) देनी पाहिए। sto है १. (1) रम यस यह गया। २. यदंत । १. (घ) महिंद्र गोरप । ४. (प) रगतम् । ५. (1) ग.ल्यो। ६. (६) में नहीं। ७. (५) मगनी। ८. (प) श्रीधूता । ६. (१) गोरख को मुणी मचिंद्र । १०. (प) गरम में। ११. (य) निनि । १२ (प) करे में । १३. (घ) नीकां मुली.पी। १४. (२) म । १५. (प) कामगि वहनां। १६. (१) मुधि । १७. () १८. (4) पावरमा । १९. (५) चिन्नामन्ति। ... (4) पहले मिला था फिर गोल और गरम पर 'चता'
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