पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१८

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। भूमिका] अंश में पायौं । सं० ११ से १४ तक को भी मैंने मूल भाग में लेने के योग्य समझा है। इनमें से 'ग्यांन चौतीसा' (च) में है और (छ) तथा (अ) से उसका सम- र्थन हो जाता है। परंतु उसको मैं समय पर प्राप्त करने में समर्थ न रहा। फिर भी आशा है कि शीघ्र ही वह भी अवश्य साहित्यिकों को उपलब्ध हो जायगा। 'रोमाचली' और 'पंचमात्रा' (क) में हैं और (छ), (घ) तथा (अ) के द्वारा उनका समर्थन हो जाता है। ग्यांन तिलक' ही एक ऐसी रचना है जो (क) (च) में नहीं है, और ऊपर की सरणी में केवल तीन प्रतियों में पाई है और जिसे मैंने मूल अंश में रक्खा है । (अ) में होने के कारण इसका सांप्रदायिक परंपरागत महत्त्व स्पष्ट है । भाषा की दृष्टि से पुरानी जान पाती है। विषय की रष्टि से भी यह रचना महत्त्व की जान पड़ती है। रामानंद के नाम से प्राप्त 'ग्यान तिलक' इसी की चाल पर रचा गया समम पड़ता है और यह तथ्य है कि रामानंद के ऊपर नाथ संप्रदाय का गहरा प्रभाव था। जोधपुर दरवार के पुस्तकालय की हस्त- लिखित प्रति में भी यह रचना गोरख को कही गई है। (घ) और (ज) प्रतियों में तो वह है ही। सं० १५ से १६ तक को प्रतियों के ऊपर (झ) प्रति ने संदेह की छाया डाल दी है। इस प्रति में 'सिष्ट पुरान' और 'दयावोध' डीडवाने के सेवादास निरंजनी की रचनाएं मानी गई हैं, पौर प्रतिलिपिकार ने 'गोरख गणेश गोष्ठी' 'महादेव गोरख गुष्टि' और 'निरंजन पुराण' को सेवादास को कहा है, यद्यपि प्रति में कहीं इस बात का संकेत नहीं है कि ये तीन सेवादास की हैं। सामान्य अव- स्थाओं में इस कारण मैं पहली दो रचनाओं को इस संग्रह में स्थान न देता परंतु यह प्रति जैसा पहले कहा जा चुका है, स्वयं संदिग्ध है। इस लिए जहाँ एक ओर मैं उनको संग्रह के मूल भाग में नहीं रख सकता वहीं सर्वथा हटा भी नहीं सकता। इसलिए मैंने उनको पहले परिशिष्ट के (क) विभाग में रक्खा है 'गोरख गणेश गोष्टी' और 'महादेव गोरस गुष्टि इस प्रति के कारण हटायी नहीं जा सकती, क्योंकि स्वयं प्रति में कोई प्रमाण नहीं है कि वे सेवादास को हैं । परंतु पौराणिक व्यक्तियों के साथ गोरख की गोष्टियां गढंत ही हो सकती हैं। इसी कारण 'गोरखदत्त गोष्ठी' भी जो () प्रति में नहीं है, इन दो के साथ-साथ पहले परिशिष्ट के (क) विभाग में रक्खी गयी है। क्योंकि सांप्रदायिक परंपरा में उनका गोरखकृत रूप में बड़ा मान है। 'गोरख गोष्टी' और 'महादेव गोरख गुष्टि (क), (च) और (अ) तीनों में है और प्रथम का तो पाँच चार अन्य प्रतियों ३ -