पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१९९

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२६ १६० [गोरख-बानी निरंजन माला, निराकार ज्वाला । कवल गरजै सबद उजियाला । छसै सहंस इकबीस मेला । नष सष पवन ले बन्धिबा भेला । नाद अनाहदै निहसबद बांणीं । जीव थें सीव होइबा प्राणीं। देही बदेही अबिचल थीरं । रुंध्र उलटि फिरि होइबा षीरं । दिष्टि बिदिष्ट जोइबा नैनं । पवन निरंजन बोलिबा बैनं । सबद निहसबद तब होइबा थूलं । आदिका आदि, सो होइबा 'मुलं । नाद ब्यंदगांठिबा पवन अकासं१३ । पड़े।४ घट न होइबा ५नासं । धरणि गगन ६ परि माघ न कोई१७ । जंत्र चलै तहं काल न होई१८ । अषंड मढी तहां जोतिबाध्यांन२०, जुग जुगर ताली, कथिबा ग्यांनं२१ मूल चक्र तहां प्रगटै ज्यदू२२, पलटै काया थिर होइ कंधू२३ । मूल बन्ध बज्र२४कछोटा पकड़िबा थीरं, सत उडियांणी, बंधिबा बीर। जत जगोटा२५ आसण पूर, अमृतधारा कमंडल होइबा सूर कुंभ२ पात्र पीयबा नीर', चेतनां विभूति२८ अंगि२९ सरीर'। छसै सहंस इकवीस मेला=२१६०० सांसें जो योगियों के अनुसार दिन भर में श्राती जाती हैं। भेलाबेदा, नौका, जहाज़ । रुध्र = रुधिर, रक्त । सीव= शिव, कैवल्यावस्था या ब्रह्म । गांठिबा=ग्रथित करना चाहिए । माघ =(अ) मार्ग, सम्भवतः मांग, 'कौन जाता ?' इसके उत्तर की मांग, रोक [ जोतिबा जोतना, जोड़ना, लगाना चाहिए; (अ) योजनीयं । बन कछोटा=बज्रकोपीन । उड़ियाणी= उडीयान बंध । कुम्भ =कुंभक,केवल कुंभक । १. यह चरण (घ) में नहीं है । २. (घ) यकु ईस करि । ३. (घ) में नहीं है। ४. (घ) निहि सबद वाणी । ५. (घ) होयबा प्रांणी। ६. (क) बधई । ७. (घ) रुध्र पलटि करि होयबा पीरे; (क) रुध्र उलटि फिरिवा षीरं । ८. (क) दृष्टि बिंवदृष्टि तक, ९.(अ) मन । १०. (घ) सब दिनसबद होयवा । ११. (घ) आदि का अनादि होयबा । १२.(घ) विंद । १३. (घ) गगन आकासं । १४ (घ) ना पड़े । १५. (घ) नां होयवा । १६. (घ) गिगनि । १७. (क) होई । १८. (क) कोई । १६. (घ) जोयबा । २०. (घ) ध्यांन" ग्यांन । २१ (घ) जुगि जुगि । २२. (घ) पलटैजिंदु २३. (घ) थिरि है कंधु । २४. (घ) जब र । २५. (घ) जोगोटा । २६. (घ) कमंडल होयवा सूर । २७. (घ) कुभं । २८. (क) विसूति (१) २६. (घ) अंग।