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पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२६

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गोरख-बानी] नाथ कहतां सब जग' नाथ्या गोरष कहता गोई। कलमा का गुर महंमद होता पहलैं मुवा सोई ॥११॥ | सारमसारं गहर गंभीरं गगन उछलिया नादं"। मानिक पाया फेरि लुकाया झूठा वाद-विवाद ॥१२॥ कोई वादी कोई विवादी जोगी कौं बाद न करना । अठसठि तीरथ समंदि समावै यूँ जोगी कौं गुरुमुषि जरनां ॥१३॥ उन की नकल नहीं कर सकते । तुम्हारे शरीर में वह (आस्मिक ) बल ही नहीं है, जो मुहम्मद में था। (क्योंकि गोरख के अनुसार, मुहम्मद जिन बातों को श्राध्यास्मिक दृष्टि से कहते थे, उन को उन के अनुयायियों ने भौतिक अर्थ में सममा) ॥१०॥ ( शब्दों के बाहार्य पर नहीं जाना चाहिए, उन का तत्वार्थ ग्रहण करना चाहिए। इसी तत्त्वार्थ-दृष्टि के अभाव में) माया को अपने वश में रखने- वाले 'नाथ' का नाम लेते हुए भी सारा संसार माया के द्वारा नाथ सला गया। (गुप्त प्राध्यास्मिक अंतर्जीवन को जगाने वाले-गोरष सो जिनि गोय उठाली करती पार न लावै-नानक, 'ग्रंथा, पृ० ४७३ ) गोरख का नाम लेते हुए भी आध्यात्मिक जीवन गुप्त ही रह गया। इसी प्रकार खाली कलमा के शब्द भी किसी का उद्धार नहीं कर सकते। फलमा को चलाने वाले मुहम्मद भी बचे न रह सके। (योगी अपने गुरुत्रों को इसी शरीर से भमर मानते हैं।)॥११॥ साधना के द्वारा ब्रह्मरंध्र तक पहुँचने पर अनाहत नाद सुनाई दिया,जो सार का भी सार और गंभीर से गंभीर है। इससे ब्रह्मानुभूति-रूप माणिक्य हाय बगा। परन्तु वह माणिक्य व्यक्तिगत साधना से प्राप्त होने पर भी दुनिया के लिए छिपा ही रहा। (वह स्वसंवेद्य है, वाणी से किसी को बताया नहीं जा सकता । इस अनुभूति के मिल जाने पर ज्ञात हुआ कि सारा वाद-विवाद मूठा है। (सच्ची तो केवल अनुभूति है। ) ॥१२॥ विभिन्न मत वाले परिडत अपने मत का.मंडन और दूसरों के मत का १. (ग) युग । २. (ग) कहतो। ३. (ग) पैहलो; (घ) पहली । ४, (ख) गीगनी; (घ) गिगन । ५. (ख); (घ) माणिक, (ग) मायक । ६. (ख) नाद... विवाद । ७. (ख) नादी।८. (ख) रोस । ६. अधिकतर (ख), (ग) और (घ) में 'करणां', 'जरणां, है, केवल (ख) में 'करना' पाठ है।