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गोरा

स्त्री जातिको एकदम दूर हा रक्खा था, और उसने कभी स्वप्न में भी इस बात का अनुभव नहीं किया कि वह एक अभाव है। आज विनय की अदली हुई हालत देख कर, संसार में स्त्रीजाति की विशेष सत्ता और प्रभाव उसके आगे प्रत्यक्ष हो उठा। लेकिन इसका स्थान कहाँ है इसका प्रयोजन क्या है, इस प्रश्नका उत्तर वह कुछ भी नहीं टीक कर सका । इसी कारण इस बात पर विनयसे बहस करना उसे अच्छा नहीं लगता । इस विषय को वह अस्वीकार भी कर सकता, और अच्छी तरह उसे समझ भी नहीं पाता। अतएव उसे आलोचना के बाहर रखना चाहता है। रातको विनय जब अपने घरको लौट रहा था, तब आनन्दमयी ने उसे पुकार कर कहा--विनय भैया, शशिमुखीके साथ क्या तेरा ब्याह प्रका हो गया है ? विनयने लज्जायुक्त मुसकान के साथ कहा—हाँ माँ,-गोरा इस शुभ कर्म का संयोजक है । आनन्दनी ने कहा-शशिनुली लड़की तो बहुत अच्छी है, लेकिन भैया, लड़कपन न कर। मैं मनको अच्छी तरह रत्ती-रत्ती जानती हूँ-तू आज कल कुछ दुचिंत्ता हो रहा है, इसीसे चटपट यह काम किये डालता है । देख, अभी सोच कर देखने का समय है । तू अब सयाना हो आया है भैया-इतना बड़ा काम अश्रद्धा के साथ, तुच्छ समझ कर, न कर डालना। यों कह कर वह विनय के शरीर पर हाथ फेरने लगी। विनय कुछ जकह कर धीरे-धीरे चला गया ।