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१५२ ]
गोरा

१५२ ] गोरा देखता है। घर की कड़ी, छन और दीवार तक उसकी दृष्टि में नई सी हो उठी है । अखिर वह ऋम क्रम से सुचरिता के सिर से पैर तक समी अङ्गों की शोमा देख चकित हो रहा । कुछ देर तक कोई कुछ न कहकर संकुचित से हो रहे । तब विनयने मुचरिताकी और देखकर कहा--"उस दिन आप क्या कहती थीं ?" और यह कह कर उसने एक बात छेड़ दी। उसने कहा- मैं आपसे तो कह चुका हूँ कि पहले मेरे मनमें कुछ और ही धारणा थी । मेरे मनमें विश्वास था कि हमारे देश के लिए, समाजके लिए, कुछ अाशा नहीं है-हम लोगों को बहुत दिनों तक नाबा- लिगकी तरह रहना होगा और अँगरेज हम लोगोंके निरीक्षक नियुक्त रहेंगे। हमार देशके अधिकांश लोगों के मनका भाव ऐसा ही है। ऐसी अवस्थामें मनुन्य या तो अपना स्वार्थ लिए रहता है या उदासीन भावसे समय बिताता है। मैंने भी एक समय चाहा था कि गोरा के पितासे कह. सुनकर कहीं नौकरी का प्रबन्ध करा लूंगा । उस समय गोराने मुझसे कहा- नहीं, तुम सरकारी नौकरी कमी नहीं कर. सकोगे इस बातसे सुचरिताके मुँह पर एक आश्चर्य का श्राभास देखकर गोराने कहा-माप यह न समझे कि गवर्नमेंट के ऊपर शोध करके मैंने ऐसा कहा है . जो लोग सरकारी काम करते है वे गवर्नमेंट की शक्ति को अपनी शक्ति समझ गर्व करते हैं और देशी लोगोंकी श्रेणी में अपनेको मित्र मानते हैं। जितने ही दिन बीतते हैं हम लोगोंका यह भाव उतना ही प्रबल होता जाता है। मेरे एक आत्मीय पुराने जमाने में डिपी थे. अब वे उस कामको छोड़ बैठे हैं । उनसे जिला मैजिस्ट्रेटनं मूला था --- बाबू आपके इजलास से इतने लोग रिहाई क्यों पाते है ? उन्होंने उत्तर दिया- "माहब उसका एक कारण है। आप जिनको जेल भेजते है वे आपके लिए कुशे-बिल्लीस बकढ़र नहीं है और मैं जिन्हें जेल भेजता हूँ उन्हें अपना भाई समझता हूँ" इतनी वात बोलने वाला डिपी तब भी था और उस बात को नुन लेनेवाले अँगरेज हाकिमका भी उस समय अभाव --