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गोरा

गोरा [ ४०५ कहीं ऐसा कुछ न कर डा, जिससे तुमको भी कष्ट मिले । तुम यह न ख्याल करो बाबूजी कि मैंने कुछ सोचा नहीं । मैंने खूब अच्छी तरह सोचकर देखा है कि मेरा जैसा संस्कार और शिक्षा है,उससे ब्राह्म-समाज के बाहर शायद मुझे बहुत सङ्कोच और कष्ट स्वीकार करना होगा; किन्तु मेरा मन कुछ कुण्ठित नहीं होता बल्कि मनके भीतर एक जोर पैदा हो रहा है, एक आनन्द हो रहा है । मुझे अगर कुछ चिन्ता है, तो बस यही बाबूजी कि पीछे मेरा कोई काम तुम्हें कुछ कष्ट न पहुँचावे ! वह कहकर लालवा धीरे धीरे परेशबाबू के पैरों पर हाथ फेरने लगी। परेशबाबूने जरा मुस्कराकर कहा-वेदी, मैं अगर केवल अपनी ही बुद्धि के उपर भरोसा करता, तो मेरी इच्छा और मत के विरोध से कोई काम होने पर मैं दुःख पाता। तुम लोगों के मनमें जो आवेग उपस्थित हुआ है, वह सम्पूर्ण अमङ्गल है. यह बात मैं जोरके साथ कह नहीं सकता । मैं मी एक दिन विद्रोह करके घर छोड़कर निकल आया था - किसी सुविधा या अतुविधा की बात नहीं सोची । सनाजके ऊपर आजकल जो यह घात-प्रतिधात चल रहा है, इसने समझ पड़ता है कि उन्हीं जगदीश्वर की शक्ति का कार्य चल रहा है। वह परम पिता अनेक अोर से तोड़ फोड़ कर, गढ़ कर, संशोधन करके, किस चीज को किस भाव से बड़ा करेंगे, यह मैं क्या जानें ! ब्राह्म-समाज या हिन्दू समाज का खयाल उन्हें नहीं है -वह मनुष्य को केवल देखते हैं। परेश बाबू कुर्सी छोड़ कर उठ खड़े हुए, और बोले-विनय तुम लोग सव बातोंको साफ करके सोच-विचार कर नहीं देखते। तुम्हारे अकेले या और किसी के मतामत की बात नहीं हो रही है। विवाह तों केवल व्यक्तिगत बात नहीं है, वह एक सामाजिक कार्य है -- यह भूल बाने से कैसे चलेगा ? तुम लोग कुछ अवकाश लेकर सोच कर देखो । अमी कोई राय पक्की न कर डालो। इतना कहकर परेश बाबू वहाँ से भागको चले गये, और वहाँ अकेले ही टहलने लगे।